सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य में अभी नई सरकार बनी भी नहीं है, पर ‘सिर मुंडाते ही ओले पड़ने’ की कहावत चरितार्थ होने लगी है। इसके तहत गरीब बीपीएल वालों को भाजपा की बननेवाली सरकार ने झटका देने का मन बना लिया है। खबर है कि गरीबों को ‘आपला दवाखाना’ योजना के तहत मुफ्त दवाएं देना बंद करने पर विचार चल रहा है।
बता दें कि राज्य में अभी नई सरकार का गठन तक नहीं हुआ है, लेकिन प्रशासन जनता को झटका देने की तैयारी कर चुका है। स्वास्थ्य सेवा मामले में महाराष्ट्र अन्य राज्यों की तुलना में पीछे है। शिंदे सरकार ने स्वास्थ्य के लिए घोषणाएं बहुत कीं, लेकिन काम जमीन पर नहीं दिखा। इसी का असर अब ‘आपला दवाखाना’ योजना पर दिख रहा है। सरकार इसके जरिए मुफ्त उपलब्ध होने वाली दवाएं नहीं देगी।
गरीबों की मुफ्त दवा पर गिरेगी गाज!
राज्य स्वास्थ्य विभाग इस योजना के तहत मुफ्त दवाइयों की आपूर्ति को रोक लगा देगा और इसे प्रधानमंत्री जन औषधि योजना से जोड़ कर केंद्र सरकार से निधि हासिल करेगा।
नई बननेवाली भाजपा सरकार गरीबों के लिए चलाई जा रही ‘आपला दवाखाना’ के तहत मुफ्त दवाएं बंद करने पर विचार कर रही है। इससे महंगी दवा न खरीद पानेवाले लाखों गरीबों की हालत खराब होगी।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, यह योजना बदलाव के दौर से गुजर रही है। राज्य स्वास्थ्य विभाग इस योजना के तहत मुफ्त दवाइयों की आपूर्ति को रोक लगा देगा और इसे प्रधानमंत्री जन औषधि योजना से जोड़ कर केंद्र सरकार से निधि हासिल करेगा। राज्य स्वास्थ्य सेवा निदेशक डॉ. स्वप्निल लाले ने बताया कि ‘आपला दवाखाना’ के लिए अलग बजट है, जिसमें भर्ती से लेकर दवाओं की खरीद तक का खर्च शामिल है। यह योजना फिलहाल कुछ समय तक जारी रहेगी। फिर इसमें बदलाव होगा और इसे प्रधानमंत्री जन औषधि योजना से जोड़ा जाएगा। बता दें कि महाविकास आघाड़ी सरकार के कार्यकाल के दौरान २०१९ में शुरू हुई इस योजना के तहत राज्य के ३४ जिलों में ४१७ ‘हिंदूहृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे आपला दवाखाना’ स्थापित किए गए हैं। इन दवाखानों ने शहरी क्षेत्रों में लगभग ५० लाख लोगों को सेवाएं दी हैं। हालांकि, यह संख्या महाराष्ट्र की ५ करोड़ से अधिक शहरी आबादी की तुलना में काफी कम है। मुंबई में वर्तमान में २४४ ‘आपला दवाखाना’ संचालित हो रहे हैं। राज्य में इस योजना का प्रबंधन स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया जाता है, जबकि मुंबई में इसे मनपा द्वारा संचालित और वित्त पोषित किया जाता है।
डॉ. लाले ने बताया कि इन क्लीनिकों के लिए किराए की जगहें ढूंढने में मुश्किलें आर्इं। इन क्लीनिकों को मुख्य सड़कों के पास होना चाहिए, न कि आवासीय इलाकों के अंदर। इसके लिए पर्याप्त जगह चाहिए और ऐसे स्थानों के किराए हमारी बजट सीमा से बाहर जा सकते हैं। राज्य सरकार ने २०२३-२४ के बजट में इस योजना के लिए ३,५०१ करोड़ रुपए आवंटित किए थे और २८३ और क्लीनिक खोलने की योजना बनाई थी। क्लीनिकों में एक मेडिकल ऑफिसर, नर्स, मल्टी-परपज हेल्थ वर्कर, अटेंडेंट और सफाईकर्मी तैनात किए गए हैं। मरीजों को मुफ्त दवाइयां मिलती हैं, जबकि डायग्नोस्टिक सेवाएं एचएलएल डायग्नोस्टिक्स के साथ साझेदारी में सब्सिडी दरों पर प्रदान की जाती हैं।