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जीडीपी के आंकड़ों पर कांग्रेस ने साधा निशाना … लोग होप में जी रहे, पीएम हाइप बनाने में व्यस्त …१० साल की तुलना में भारतीयों की घटी क्रय शक्ति

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
जुलाई से सितंबर २०२४ के लिए जारी जीडीपी के आंकड़ों को लेकर कांग्रेस ने केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने आरोप लगाते हुए कहा कि भारत के विकास में मंदी है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाइप बनाने में लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि जीडीपी में वृद्धि के इन तिमाही आंकड़ों से पता चलता है कि निजी निवेश सुस्त बना हुआ है और मध्यम तथा दीर्घकालिक आर्थिक क्षमता तेजी से खत्म हो रही है और इस स्थिति का मूल कारण मोदी सरकार में श्रमिकों की मजदूरी में बढ़ोतरी नहीं होना है।
कांग्रेस नेता ने कल सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि जुलाई से सितंबर २०२४ के लिए कल शाम जारी किए गए जीडीपी विकास के आंकड़े अनुमान से कहीं अधिक खराब हैं। भारत में ५.४ प्रतिशत की मामूली वृद्धि दर्ज की गई है और खपत में वृद्धि भी महज ६ प्रतिशत है। कांग्रेस नेता ने कहा कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में खेतिहर मजदूरों की वास्तविक मजदूरी हर साल ६.८ प्रतिशत की दर से बढ़ी, जबकि प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में कृषि मजदूरों की वास्तविक मजदूरी में हर साल १.३ प्रतिशत की गिरावट आई। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री और उनके ‘चीयरलीडर्स’ जानबूझकर इस मंदी के कारणों को नजरअंदाज कर रहे हैं, लेकिन एक अग्रणी वित्तीय सूचना सेवा कंपनी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च की ‘लेबल डायनामिक्स ऑफ इंडियन स्टेट्स’ नाम की एक नई रिपोर्ट इसके असली कारण का खुलासा करती है, जो कि स्थिर मजदूरी है।

मजदूरी दर में भी आई गिरावट
कांग्रेस नेता ने कहा कि रिपोर्ट में यह दिखाने के लिए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण डेटा का इस्तेमाल किया गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर ओवरऑल रियल वेज ग्रोथ (प्रत्येक राज्य में महंगाई के लिए समायोजित करके) पिछले ५ सालों में ०.०१ प्रतिशत पर स्थिर रही है। श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी २०१४-२०२३ के बीच स्थिर रही है तथा २०१९-२०२४ के बीच वास्तव में इसमें गिरावट ही आई है। कांग्रेस नेता ने आगे कहा कि दरअसल हरियाणा, असम और उत्तर प्रदेश के श्रमिकों की तो इसी अवधि में वास्तविक मजदूरी में गिरावट देखी गई है। यह कोई अपवाद नहीं है – लगभग हर साक्ष्य और तथ्य इसी विनाशकारी निष्कर्ष की ओर इशारा कर रहे हैं कि औसत भारतीय आज १० साल पहले की तुलना में कम खरीदारी कर पा रहा है, उनकी क्रय शक्ति घट गई है। यह भारत के विकास में मंदी का अंतिम मूल कारण है।

उन्होंने आगे कहा कि इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि जीडीपी वृद्धि के तिमाही आंकड़ों से पता चलता है कि निजी निवेश सुस्त बना हुआ है। हमारी मध्यम और दीर्घकालिक आर्थिक क्षमता तेजी से खत्म हो रही है। इसका मूल कारण करोड़ों श्रमिकों की स्थिर मजदूरी है। उन्होंने सवाल किया कि इस गंभीर हकीकत को कब तक नजरअंदाज किया जाता रहेगा? उन्होंने कहा कि भारत के लोग ‘होप’ (आशा) में जी रहे हैं, जबकि प्रधानमंत्री सिर्फ ‘हाइप’ (प्रचार-प्रसार) बनाने में लगे हैं।

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