कस्तूरी

स्मृतियां कैसी भी हों
हृदय पटल पर हर पल
अंकित रहती है।
बीत रहा हर क्षण
इन्हीं स्मृतियों से
कहीं न कहीं जुड़ा होता है।
प्रभात हो या संध्या
हो ऋतु की कोई बेला
नहीं होता कभी भी
यह चित अकेला।
बिछड़ गया हो साथी
यही यादें सखी से अरि बन जाती हैं।
अश्रु की बूंदें आंखों की
कोरों पर टिक जाती हैं।
खट्टी-मीठी यादों को भिगोते
वियोग में वह क्षण
मन को अधिक व्यथित करते हैं
संयोग में जिन्हें हमने तरजीह न दी होती है
लगता है छाया चित्र में
अब तुम बोल पड़ोगे
तुम्हारी छवि पर पुष्प माला
नहीं लगाती हूं मैं,
पुष्प सूख कर झर जायेंगे
पर हो तुम जीवंत मेरे मन में।
समय न रुका न रुकेगा
सांसों का सिलसिला चलता रहेगा।
प्रिय तेरे प्यार की कस्तूरी
मुझे सतत सुवासित करती रहेगी।

बेला विरदी।

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