बांग्लादेश में हाल ही में अल्पसंख्यकों पर हो रही हिंसा ने पूरे क्षेत्र में चिंता पैदा कर दी हैं। धर्म के आधार पर हो रही इस तरह की घटनाएं न केवल मानवता के खिलाफ अपराध है, बल्कि हमारे क्षेत्रीय संबंधों और वैश्विक छवि पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करती हैं। इन घटनाओं के मद्देनज़र, यह समय की मांग है कि भारत अपने पड़ोसी देश में स्थिति को स्थिर करने और वहां रहने वाले अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाए।
इस समस्या का हल केवल बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति पर निर्भर नहीं हो सकता। भारत, जो हमेशा से “वसुधैव कुटुंबकम” के आदर्श का पालन करता आया है, क्या अब चुपचाप यह सब होते हुए देख सकता है? बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा मानवाधिकारों का उल्लंघन है और इसे रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र, को कदम उठाना चाहिए। क्या यह उचित नहीं होगा कि भारत संयुक्त राष्ट्र में यह मांग उठाए कि बांग्लादेश में शांति सेना तैनात की जाए? इससे न केवल हिंसा रोकी जा सकेगी, बल्कि पीड़ितों को सुरक्षा भी मिलेगी।
यह मुद्दा केवल राजनीतिक नहीं है; यह भावनात्मक भी हैं। बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यक भारतीय उपमहाद्वीप के साझा इतिहास और संस्कृति का हिस्सा हैं। उनके साथ जुड़ी हमारी भावनाएं, परिवार, संपत्तियां और प्रियजन इस विषय को और अधिक जटिल बना देते हैं। ऐसे में भारत सरकार से यह अपेक्षा करना स्वाभाविक हैं कि वह इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाए। लेकिन क्या यह पर्याप्त होगा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर सक्रिय रूप से कदम उठाने चाहिए। क्या भारत सरकार बांग्लादेश को एक स्पष्ट संदेश दे सकती हैं कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ किसी भी प्रकार का अत्याचार स्वीकार्य नहीं होगा? क्या यह संभव नहीं हैं कि भारत और बांग्लादेश के बीच एक मानवाधिकार आयोग स्थापित हो, जो इस तरह की घटनाओं पर नज़र रखे और समाधान सुझाए?
इसके साथ ही, भारतीय नागरिकों को भी इस मुद्दे पर एकजुट होना होगा। यह समय हैं कि राजनीतिक दल और विभिन्न विचारधाराएं एकजुट होकर बांग्लादेश में हो रही हिंसा के खिलाफ एक मजबूत संदेश दें। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, भारत को अपने पड़ोसी के हालात को सुधारने के लिए एक कूटनीतिक अभियान शुरू करना चाहिए।
यह सवाल उठता है कि क्या बांग्लादेश को अपने अधीन लाने का प्रस्ताव व्यावहारिक है? ऐसा कदम न केवल क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित करेगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन भी होगा। लेकिन यह भी सच हैं कि अगर बांग्लादेश की सरकार अपने अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने में असफल रहती हैं, तो भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को हस्तक्षेप करना ही होगा।
यह समय हैं कि भारत अपनी मानवतावादी भूमिका निभाए और यह सुनिश्चित करे कि हमारे पड़ोस में कोई भी व्यक्ति धार्मिक आधार पर उत्पीड़न का शिकार न हो। क्या हम इस चुनौती के लिए तैयार हैं?