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झांकी : चिट्ठी में दूल्हा

अजय भट्टाचार्य

महीनेभर चले सत्तासुंदरी के स्वयंवर का हश्र यह है कि स्वयंवर में जोर आजमाइश करनेवाले साझे गिरोह का हर मुखिया खुद को वर बनते देखना चाहता है। स्वयंवर में विजयी होने के बाद जिसे खुद के सिर पर फिर से सेहरा बंधने की उम्मीद थी, वह टोटे-टोटे हो गई। दूसरे वाले की जान अटकी पड़ी है। अपने खानदान के १३२ बाराती जुटाने के बावजूद दूल्हा बन पाएंगे या नहीं, सस्पेंस बरकरार है। मंडप तैयार हो रहा है और कल तक तैयार भी हो जाएगा मगर दूल्हा? पता चला है कि दूत चिट्ठी लेकर आनेवाले हैं। चिट्ठी में इसका, उसका, जिसका भी नाम होगा, दूल्हा वही बनेगा। आज का दिन बहुत खास है। बाकी के लिए ‘यही रात अंतिम यही रात भारी’ वाली बात है।
असंतुष्ट आत्माओं का घर
रविवार को नागपुर में ‘जीवन के ५० स्वर्णिम नियम’ नामक पुस्तक का विमोचन करने के बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने राजस्थान में दिए अपने भाषण को दोहराया। बोले-राजनीति हमेशा से असंतुष्ट आत्माओं का घर रहा है। यहां पर हर व्यक्ति दुखी है। जो पार्षद बनता है वह इसलिए दुखी है, क्योंकि वह विधायक नहीं बन पाया। विधायक इसलिए दुखी होता है, क्योंकि वह मंत्री नहीं बन पाया। वहीं जो मंत्री बनता है वह इसलिए दुखी रहता है क्योंकि उसे अच्छा मंत्रालय नहीं मिला और वह सीएम नहीं बन पाया, जबकि सीएम इसलिए दुखी रहता है, क्योंकि उसे नहीं पता कब आलाकमान उसे पद छोड़ने के लिए कह दे। अपनी बेबाकी के लिए मशहूर गडकरी का इस भाषण को दोहराने का मंतव्य साफ है। नागपुर से लेकर ठाणे तक समझने वाले समझ गए होंगे।
मेवाणी बैकफुट पर
गुजरात में कांग्रेस विधायक जिग्नेश मेवाणी हाल ही में महिसागर कलेक्टर नेहा कुमारी से भिड़ गए थे, अब खुद को बैकफुट पर पाते हैं। मेवाणी ने कुमारी पर दलितों के खिलाफ भेदभावपूर्ण टिप्पणी करने का आरोप लगाया और उनके निलंबन की मांग की, यहां तक कि विरोध-प्रदर्शन भी किया। हालांकि, अब स्थिति बदल गई है। क्षेत्र के एक अन्य दलित समूह ने कुमारी के समर्थन में रैली निकाली है और मेवाणी के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया है। इस अप्रत्याशित प्रतिक्रिया ने युवा, उग्र विधायक को अपने अगले कदम पर विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। यह विवाद २०१५ बैच की आईएएस अधिकारी कुमारी के साहस और क्षमता को उजागर करता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)

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