सीरिया में बशर अल-असद परिवार का पांच दशक का एकछत्र राज खत्म हुए चार दिन हो गए हैं। खुद सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद को अपने परिवार समेत देश छोड़कर भागना पड़ा है। ‘हयात तहरीर अल-शाद’ के विद्रोहियों ने यह तख्तापलट किया। इस संगठन का चीफ अबू मोहम्मद अल जोलानी है। जोलानी ने पहले ही सीरिया के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया था और अब उसने सीधे दमिश्क में घुस कर, वहां के बशर अल-असद के पांच दशक के शासन का खात्मा कर दिया। लेकिन इससे उस देश में सिविल वॉर या अशांति, हिंसा समाप्त हो जाएगी इसकी संभावना नहीं है। इस तख्तापलट को शक्ल देने वाला अबू मोहम्मद अल-जोलानी खुद को जिहादी का हिमायती नहीं कहता। सीरिया में तालिबान या आईएसआईएस की तरह ‘धर्मसत्ता’ स्थापित करने की उसकी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है, यह भी उसके संगठन हयात तहरीर अल-शाद (एचटीएस) का दावा है। लेकिन आनेवाला वक्त ही बताएगा कि असल में क्या होता है। फिर यहां हमेशा की तरह ‘शिया-सुन्नी’ खूनी संघर्ष का अभिशाप है। हालांकि, सीरिया एक सुन्नी बहुल देश है, लेकिन वहां पर ५० सालों तक शिया शासकों की तानाशाही चली और एक बड़ा हिस्सा शिया बहुल है। इसलिए मुल्क के बदले हुए हालात में भी सुन्नी समुदाय को संघर्ष और
बदले का डर
सता रहा है। नई सत्ता का हुक्मरान जोलानी भले ही सीरिया में जिहादी शासन के बजाय ‘नियमित प्रशासनिक’ शासन लागू करने का वादा कर रहा है, लेकिन उस पर कौन भरोसा करेगा? और फिर, सवाल यह भी है कि जोलानी का संगठन सुन्नी समुदाय का है, तो क्या उसे ‘मदद’ करने वाले सुन्नी समर्थक देश उसके ‘मध्य मार्ग’ को स्वीकार करेंगे? दरअसल यह भूमिका वे अस्वीकार ही करेंगे और उसके चलते यह नया राज भी अस्थिर होगा। सीरिया में सत्ता परिवर्तन के लिए वर्तमान में जोलानी के ‘एचटीएस’ संगठन के साथ अन्य समूह कब तक जुड़े रहेंगे, यह भी एक मसला है। तो यह सवाल बरकरार है कि क्या सीरिया शांति और स्थिरता की ओर बढ़ेगा? हालांकि, नए सत्तारूढ़ विद्रोहियों के नेता जोलानी ने दावा किया है कि वह सीरिया में ‘धर्मतंत्र’ स्थापित नहीं करेगा, लेकिन इस्लामी देशों का पूर्वानुभव कुछ और ही बताता है। सीरिया का भविष्य इस बात पर भी निर्भर करेगा कि जोलानी के ‘एचटीएस’ और अन्य संगठन, जो सत्ता के इस तख्तापलट में सीधे तौर पर भाग ले रहे हैं, साथ ही पर्दे के पीछे से उनमें से प्रत्येक के सूत्रों को संचालित करने वाले देश हैं, वे भविष्य में अपने हितों को वैâसे साधते हैं।
अमेरिका और रूस
इन दोनों महाशक्तियों के सीरिया में अलग-अलग ‘इंटरेस्ट’ हैं। उसके मुताबिक, उन्होंने अपनी चालें चलनी शुरू कर दी हैं। अमेरिका ने सीरिया में हवाई हमले कर ‘आइसिस’ के ७५ ठिकानों को नष्ट कर दिया है। क्योंकि बदलते हालात में ‘आइसिस’ भी सीरिया में अपने हाथ-पैर पैâलाने की कोशिश कर रहा है। इजरायल ने तो ‘इजरायली नागरिकों की सुरक्षा’ का हवाला देते हुए सीरिया के गोलान हाइट्स के १० किलोमीटर इलाके पर कब्जा कर लिया है। हालांकि, इजरायल कह रहा है कि कब्जा ‘कुछ समय’ के लिए होगा, लेकिन यह चालबाजी कितने समय तक चलेगी, इसका जवाब कोई नहीं दे सकता। वहां भले ही रूस यूक्रेन युद्ध में उलझा हुआ है, लेकिन उसने असद परिवार को राजनीतिक शरण देने की घोषणा करके यह स्पष्ट कर दिया है कि वह सीरिया में हस्तक्षेप करना जारी रखेगा। तुर्की और ईरान जैसे देश भी सीरिया पर ‘नजर’ रखे हुए हैं। इसलिए सीरिया का सत्ता परिवर्तन वहां शांति और स्थिरता लाता है या वहां की अशांति पिछले पन्ने से अगले पन्ने पर जारी ही रहती है यह फिलहाल कहा नहीं जा सकता। भले ही सीरियाई नागरिकों को पांच दशकों की तानाशाही से मुक्ति मिल गई हो, लेकिन सीरिया का क्या होगा? वह एक रहेगा या उसके टुकड़े कर दिए जाएंगे, इन सवालों के जवाब तो भविष्य में ही मिलेंगे।