विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।क्या किसी खास पेशे या समाज या उम्र के ही लोग कोई खास काम कर सकते हैं…
ऐसा किसी खास कामकाज के सिलसिले में होगा लेकिन जहां तक बात सरमायादारों के संसार में कुछ कर गुजरने की है, वहां कुछ भी संभव है…
वहां तो उम्र, जाति, समाज, भाषा, लिंग का कोई प्रतिबंध ही नहीं है…
बस दिल में डर नहीं होना चाहिए…
….या फिर कोई ऐसी मजबूरी हो कि पैसे कमाने के लिए किसी भी हद तक कोई गुजर जाए।
ऐसी ही एक कहानी है शाहिद की…
एजाज लकड़ावाला की गुंडा टोली का प्यादा और हफ्ताखोर डोंगरी निवासी शाहिद मर्चेंट ४८ था। वह पेशे से नाई था। दो साल के छोटे से वक्फे में शाहिद सफल हफ्ताखोर बन कर उभरा। उसे काले संसार में घसीटने वाला एजाज लकड़ावाला था।
नवंबर २००२ के पहले सप्ताह में अपराध शाखा की इकाई १० के अधिकारियों ने शाहिद को लकड़ावाला के लिए एक व्यापारी से ५ लाख रुपए वसूलने के आरोप में रंगे हाथों गिरफ्तार किया था। स्कूली शिक्षा पूरी न करने वाले शाहिद ने पुलिस के लिए भारी सिरदर्द पैदा किया था क्योंकि वह बार-बार बयान बदल कर उन्हें उलझन में डाले रखता था और जांच एक दिशा में नहीं बढ़ती थी।
अधिकारियों के मुताबिक शाहिद ने डोंगरी स्थित हजामत की दुकान १९९९ में करंसी एक्सचेंज एजंसी में बदली थी। उसे जब पता चला कि इस कारोबार में पैसा तो कम है ही, खतरा भी अधिक है तो उसने काम बदलने की सोची।
कहते हैं कि जून १९९९ में शाहिद ने एक होटल उद्योगपति से लकड़ावाला के लिए सौदेबाजी की। इस होटल मालिक को लकड़ावाला ने ५० लाख रुपए हफ्ते के लिए धमकाया था। लकड़ावाला ने इसी शर्त पर होटल मालिक से पैसे न लेने की बात कही, यदि शाहिद मुंबई में उसका कलेक्शन एजंट बन जाए। शाहिद ने तुरंत स्वीकार लिया क्योंकि उसे तेजी से पैसे बनाने थे।
पुलिस को दिए बयान के मुताबिक, मस्जिद बंदर के व्यापारियों से लकड़ावाला ने पैसे वसूलने में शाहिद को लगाया। पुलिस के मुताबिक, जून २००३ के पहले सप्ताह के पहले ही दिन अंधेरी के एक व्यापारी से हफ्ते की रकम वसूलने आ रहे शाहिद की सूचना शिकार ने दी। अधिकारियों ने जाल बिछाया। इं. ज्ञानेश देवड़े और डीबी पाटिल व्यापारी के वेश में शाहिद से मिलने अंधेरी पूर्व में रेलवे स्टेशन के बाहर तय स्थान पर पहुंचे। मोटरसाइकिल के करीब दोनों शाहिद से मिले। शाहिद ने पैंट की बेल्ट में खोंसी पिस्तौल पर उनका हाथ फिरवाया ताकी वे डर जाएं। यही तो अधिकारी चाहते थे कि यदि हफ्ताखोर के पास हथियार हो और जानकारी पहले से मिल जाए और वे उसे काबू करने के पहले हथियार कब्जे में लें। यही हुआ भी।
अब शिकारी खुद शिकार का शिकार बन गया। एक इंस्पेक्टर ने तुरंत शाहिद की पिस्तौल पर कब्जा किया। दूसरे इंस्पेक्टर ने तुरंत अपनी पिस्तौल उसके सिर पर टिका दी। शाहिद यह देख हक्का-बक्का रह गया। उसने सपने में न सोचा था कि कोई व्यापारी उससे ऐसी दीदादिलेरी करेगा। अधिकारियों को लगा कि लकड़ावाला के नाम पर शाहिद व्यापारियों को डरा कर अपना उल्लू सीधा करने वाला कोई छुटभैय्या गुंडा है। पूछताछ में पता चला लकड़ावाला के गिरोह का वह महत्वपूर्ण सदस्य है।
शाहिद को गिरफ्तार करने वाले इं. फिरोज पटेल के मुताबिक, गिरफ्तारी के पहले तक शाहिद ने १० लाख से अधिक की उगाही कई व्यापारियों से की थी। शाहिद का काम देख लकड़ावाला ने उसे एक और काम सौंपा।
शाहिद को लकड़ावाला ने कहा कि पहली धमकी के बाद व्यापारियों से मिले। व्यापारियों को धमका कर गिरोह के लिए हफ्ते की सौदेबाजी करे और बताए व्यक्ति को रकम सांैंपे। इसके एवज में उसे अच्छी कमाई हो रही थी। अधिकारियों के मुताबिक, लकड़ावाला ने शाहिद को सौदेबाजी के गुर सिखाए थे। उसे बताया कि किस तरह व्यापारी के सामने जाते ही पहले पिस्तौल निकाल कर सामने टेबल पर रखे, जिससे शिकार डर जाएगा और सौदेबाजी सरल हो जाएगी।
हफ्ताखोर बनना आसान नहीं है। अगर चालाकी नहीं है तो कब पुलिस की गिरफ्त में जा फंसेंगे, इसकी कोई समय सीमा तय नहीं होती।
मामले की पूरी तफसील देकर खबरी ने आखिरी संवाद जड़ा:
– वस्त्रा गाल पे फिराना अल्लग बात है, गले पे अल्लग।
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)