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आउट ऑफ पवेलियन : छपते ही कैसे बिक गई पत्रिका? …स्केटर की तस्वीर ने किया कमाल


अनिताभ श्रीवास्तव

`प्लेबॉय’ एक ऐसी पत्रिका है, जो विश्व में अपने ग्लैमर चित्रों के लिए पहचानी जाती है। इसके लिए समाज के हर वर्ग के विख्यात लोगों ने फोटो शूट कराया है और यह पत्रिका पहचानी ही इसलिए जाती है, क्योंकि इसमें सेलेब्रेटी की उत्तेजक तस्वीरें होती हैं। वैसे इस पत्रिका को सभ्य समाज ने कभी स्वीकार नहीं किया। जो भी हो, पर इसके ताजा अंक ने पत्रिका के लिए करिश्मा कर दिखाया है। विश्व की खूबसूरत स्केटर, जो चैंपियन भी हैं, ने इसके लिए फोटो शूट क्या करवाया पत्रिका हाथों हाथ बिक गई। ऐसा बहुत कम ही होता है कि पत्रिका का पुन: प्रकाशन किया जाए मगर इस बार ऐसा ही कुछ हुआ। दरअसल, जॉय ब्यून ने डच प्लेबॉय पाठकों को आकर्षित किया है। यह आकर्षक स्पीड स्केटर पत्रिका के दिसंबर अंक में छपी थी। २५ वर्षीय ब्यून बर्फ पर स्केटिंग करती हैं, जो प्रशंसकों की पसंदीदा हैं और उनकी लोकप्रियता पत्रिका की बिक्री के दौरान सामने भी आई है। उनके गृह देश हॉलैंड में, नवीनतम डच प्लेबॉय अंक को पुन: मुद्रित करना पड़ा है, जबकि यह पिछले गुरुवार को ही बिक्री के लिए उपलब्ध हुआ था। प्रधान संपादक नीक स्टोल्कर ने स्वीकार किया है कि ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं आई। उन्होंने डच पोर्टल एड को बताया, `पिछले ग्यारह वर्षों में जब से मीडिया हमारी पत्रिका प्रकाशित कर रहा है, ऐसा कुछ कभी नहीं हुआ। ब्यून डच प्लेबॉय के कवर पर आनेवाली पहली विश्व चैंपियन हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि पत्रिका के कितने अंक बिक चुके हैं। उन्होंने कहा, `यह सुनकर बहुत अच्छा लगा।’ इस स्केट सुंदरी की कवर पेज पर तस्वीर छपते ही लोगों ने हाथों-हाथ पत्रिका खरीद ली। इसलिए भी कि इस खिलाड़ी को लोग पसंद करते हैं।
क्या मजदूरों के खून से होगा
फुटबॉल विश्वकप का आयोजन?
हाल ही में जब २०३४ फुटबॉल विश्वकप के मेजबान के रूप में सऊदी अरब को घोषित किया गया और इसके लिए यहां निर्माण कार्यों की झलक देखी गई तो दुनिया के सामने सवाल खड़ा हो गया कि क्या सऊदी अरब इस आयोजन को प्रवासी मजदूरों के खून से आयोजित करवाएगा? दरअसल, मामला कुछ ऐसा ही है, क्योंकि कई निर्माण परियोजनाओं पर अरबों पाउंड खर्च होने वाले हैं, जिसमें एक संपूर्ण मेगा सिटी भी शामिल है। तैयारी के तौर पर सऊदी ने १५ अत्याधुनिक स्टेडियमों के निर्माण की योजना का अनावरण किया है, जिनमें से ११ पूरी तरह से नए बनाए जाएंगे। ग्यारह नए स्टेडियम, दुनिया का सबसे बड़ा हवाई अड्डा और यहां तक ​​कि एक अनिर्मित मेगासिटी। इन सब योजनाओं को लेकर ही सऊदी को एक पागलभरे देश की तरह देखा जाने लगा है, क्योंकि कहा जा रहा है कि वो २०३४ विश्वकप को मजदूरों के खून-पसीने पर आयोजित कराएगा। जिसकी मानवाधिकार रिकॉर्ड के लिए इसकी आलोचना की गई है। बताया गया कि स्टेडियमों के चमकदार मॉडल बड़े हास्यासपद हैं, जो विज्ञान-कल्पना संरचनाओं को दर्शाते हैं, लेकिन मानवाधिकार समूहों ने चेतावनी दी है कि ऐसा प्रवासी श्रमिकों के जीवन की कीमत पर होगा। आठ स्टेडियम राजधानी रियाद में, चार जेद्दा में तथा अल खोबर, आभा और नियोम में एक-एक स्टेडियम होंगे। निओम में तो एक नया रेगिस्तानी मेगा शहर बनाया जाएगा। इसका आधा हिस्सा समुद्र में तैरता हुआ होगा। हालांकि, इस बात की चिंता भी बनी हुई है कि क्या शहर का निर्माण समय पर पूरा हो पाएगा। वे विश्व के सबसे बड़े हवाई अड्डे किंग फहद अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का निर्माण कराने का भी वादा कर रहे हैं, जो २०३० में खुलेगा और सब कुछ दिन-रात एक कर देने वाले मानव समूहों पर ज्यादती करने से ही संभव है। यानी मजदूरों के जीवन की कीमत पर। (लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार व टिप्पणीकार हैं।)

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