भरतकुमार सोलंकी
मुंबई
क्या आपने कभी अपने दस्तावेजों को ध्यान से देखा है? आधार कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट, बिजली बिल, बर्थ सर्टिफिकेट और जमीन-जायदाद के रिकॉर्ड। क्या इन सभी जगहों पर आपका नाम एक जैसा लिखा है? क्या स्कूल के रिकॉर्ड से लेकर घर की नेमप्लेट तक आपका नाम एकरूपता से दर्ज है? अगर नहीं, तो यह न केवल आपकी पहचान को भ्रमित करता है, बल्कि भविष्य में आपके परिवार के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
सोचिए, यह कितने शर्म की बात है कि किसी बेटे को अपने पिता के निधन के बाद यह पूछना पड़े कि मृत्यु प्रमाण पत्र पर सही नाम क्या लिखना है। पिता ने अलग-अलग दस्तावेजों में अलग-अलग नाम लिखवा रखा था। बर्थ सर्टिफिकेट में कुछ, पैन कार्ड पर कुछ और, और घर की नेमप्लेट पर तो बिल्कुल अलग। क्या यह हमारी जिम्मेदारी नहीं है कि हम अपनी पहचान को स्पष्ट और सटीक बनाएं?
सरकार ने पैन कार्ड फॉर्म में नाम लिखने का एक मानक प्रारूप बताया है: फर्स्ट नेम, मिडिल नेम और लास्ट नेम। लेकिन क्या यह जानकारी जनता तक पहुंच पाई है? क्या स्कूल और पंचायत स्तर पर इस बारे में जागरूकता पैâलाई जा रही है?
नाम की समानता की यह समस्या केवल दस्तावेजों तक सीमित नहीं हैं। म्यूनिसिपल प्रॉपर्टी कार्ड, ग्राम पंचायत में दर्ज घर का नाम, खेती की जमीन पर मालिक का नाम, बिजली और मोबाइल बिल, हाउसिंग सोसायटी के रिकॉर्ड और वोटर आईडी तक हर जगह नाम का सटीक होना जरूरी है।
अब सवाल उठता है कि क्या सरकार और समाज इस समस्या की गंभीरता को समझ रहे हैं? क्यों न एक ऐसा अभियान चलाया जाए, जिसमें हर व्यक्ति अपने नाम को सभी दस्तावेजों में सटीक कर सके? क्या यह समय नहीं है कि डिजिटल रिकॉर्ड को सुधारने के लिए केंद्रीकृत प्रणाली विकसित की जाए?
हमारे समाज में यह धारणा आम है कि नाम बस पहचान के लिए है, लेकिन जब यह पहचान आपके वारिसदारों के लिए समस्या बन जाए, तब जिम्मेदारी किसकी है? क्या सरकार इस मुद्दे पर केवल निर्देश देकर अपना पल्ला झाड़ सकती है या फिर समाज को इस दिशा में कदम बढ़ाने की जरूरत है?
‘नाम चाहे कागजों पर हो या घर की दीवार पर, उसकी पहचान सटीक और एक जैसी होनी चाहिए।’ यह केवल एक आदर्श वाक्य नहीं है, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है। अगर हम इसे समझें और अपनाएं, तो न केवल हमारा जीवन आसान होगा, बल्कि हमारी आनेवाली पीढ़ी भी इस भ्रम से बच सकेगी।
(लेखक आर्थिक निवेश मामलों के विशेषज्ञ हैं)