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संपादकीय : कानून जनता के हाथ में …ऐसा वक्त आ सकता है!

मुंबई हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के कामकाज की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि यदि कानून को सख्ती से लागू नहीं किया जा सकता है तो लोगों को कानून अपने हाथ में लेने दें और उन्हें जो करना है करने दें। अदालत ने मुंबई में जगह-जगह अवैध फेरीवालों की समस्या और इसे हल करने में सरकार और अन्य एजेंसियों की विफलता के लिए सरकार का वस्त्रहरण कर दिया। सिर्फ मुंबई ही नहीं, बल्कि राज्य के सभी शहरों में हालात जुदा नहीं हैं। हाई कोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान इन्हीं हालातों पर उंगली उठाते हुए सरकार के कान उमेठे। पिछले दिनों कोर्ट ने मुंबई हाई कोर्ट के मार्ग में अवैध फेरीवालों को हटाने का आदेश दिया था। उसी के अनुरूप कार्रवाई भी की गई थी, लेकिन जो अन्यत्र होता है वह यहां भी हुआ। हटाए गए फेरीवालों ने फिर से वहीं अपना बाजार सजा दिया और उन्हें हटाने वाली मशीनरी भी ‘हाथ बांधे और मुंह पर ताला लगाकर’ चुपचाप बैठ गई। सरकार की इस लापरवाही पर हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया और नाराजगी भरी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘तो फिर जनता को ही कानून अपने हाथ में लेने दीजिए।’ अब क्या न्यायपालिका को ही ऐसे शब्द बोलने चाहिए?
ऐसे तर्क
प्रस्तुत किए जाएंगे; लेकिन हमारे राज्य में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में हालात कोर्ट द्वारा दी गई चेतावनी की ओर बढ़ रहे हैं। हालांकि मुंबई हाई कोर्ट की फटकार मुंबई में अवैध फेरीवालों के बारे में हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में देश में जो हो रहा है और किया जा रहा है या होने के दरमियान शासक जिस तरह से देखने वाले की भूमिका अपना रहे हैं, उसके चलते जो तस्वीर है, उससे साफ है कि अब हमारे देश के लोगों को कानून अपने हाथ में लेने का समय आ गया है। मोदी सरकार भले ही बड़ी-बड़ी बातें कर रही है, लेकिन देश और जनता के हालात हर क्षेत्र में खराब हो चुके हैं। महंगाई दूर करने की शेखी बघारते हुए मोदी सरकार पहली बार सत्ता में आई थी। आज दस साल बाद क्या स्थिति है? मोदी की पार्टी ने उस समय जो ‘महंगाई डायन’ का हौवा बनाया था, वह ‘महंगाई डायन’ और भी ज्यादा उग्र रूप में जनता की गर्दन पर बैठी है। सरकार एक तरफ ‘पांच ट्रिलियन’ की अर्थव्यवस्था की पतंगबाजी कर रही है और दूसरी तरफ देश की
‘जीडीपी’ गिरती
जा रही है। निवर्तमान रिजर्व बैंक गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास ने यह चेतावनी पिछले हफ्ते दी है। एक तरफ महंगाई और दूसरी तरफ बेरोजगारी की चक्की में लोग फंसे पड़े हैं। किसानों की हालत भी कुछ अलग नहीं है। १० साल पहले कृषि उपज के लिए ‘न्यूनतम उचित मूल्य’ का वादा करने वाले मोदी आज भी इसे पूरा करने के मामले में आगा-पीछा कर रहे हैं। इसलिए, दिल्ली की सीमाओं पर देश के किसान कड़ाके की ठंड में फिर से एक नई लड़ाई का बिगुल बजाने पर मजबूर हो गए हैं। मोदी राज में देश के हर क्षेत्र और हर सामाजिक समूह में अशांति है। महंगाई, बेरोजगारी, जीएसटी और अन्य आर्थिक नीतियां, केंद्रीय एजेंसियों का आतंकवाद, धार्मिक-सामाजिक अशांति देश की मौजूदा तस्वीर है। समस्याएं सुलझने के बजाय बढ़ती जा रही हैं। इससे लोगों का सरकार और शासकों पर से भरोसा उठता जा रहा है। ‘लोगों के हाथ में कानून सौंप दो’, मुंबई हाई कोर्ट द्वारा व्यक्त किया गया गुस्सा निराधार नहीं है। कोर्ट ने आज जो कहा, देश की जनता कल कह सकती है और उसके अनुसार कार्य कर सकती है। मोदी सरकार की समग्र नीतियों और शासन को देखते हुए, यह वक्त आ भी सकता है!

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