सामना संवाददाता / मुंबई
बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट (बेस्ट) उपक्रम, जो पिछले ७७ वर्षों से मुंबईकरों की जीवनरेखा है, गंभीर संकट का सामना कर रहा है। बेस्ट के स्वामित्व वाली बसों की संख्या में भारी गिरावट और ठेकेदारों (वेट लीज) के जरिए संचालित बसों के बढ़ते हादसों ने सुरक्षा व सेवा की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
बसें घटी, संकट बढ़ा!
मुंबई मनपा अधिनियम, १८८८ के अनुसार, बेस्ट उपक्रम को अपने स्वामित्व की न्यूनतम ३,३३७ बसें रखना अनिवार्य है, लेकिन २०१९ के बाद से नई बसों की खरीद के लिए वित्तीय सहायता बंद है। ऐसे में २०२५ तक बेस्ट के पास खुद की केवल २५१ बसें बचेंगी, जो कुल बस बेड़े का मात्र ८ फीसदी होंगी। यह कमी न केवल सेवा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है, बल्कि मुंबईकरों के लिए चिंता का बड़ा कारण बन गई है।
लीज बसों के हादसे बढ़े!
प्राइवेट वेट लीज बसों के जरिए सेवा देने का विकल्प बेस्ट के लिए और मुंबईकरों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। हाल के वर्षों में इन बसों के कारण दुर्घटनाओं की घटनाएं बढ़ी हैं। ९ दिसंबर २०२४ को कुर्ला में हुए भयावह बस हादसे में कई जानें गर्इं, जिसने बेस्ट के संचालन पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
‘बेस्ट बचाओ’ की गुहार
बेस्ट की सेवाओं को बचाने के लिए जुलाई २०२४ में ‘बेस्ट बचाओ’ अभियान शुरू किया गया। इस अभियान का उद्देश्य बेस्ट के पास उसके स्वामित्व की ३,३३७ बसों का बेड़ा पुन: स्थापित करना और प्राइवेट वेट लीज पद्धति को समाप्त करना है।