सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई सहित पूरे देश के जैन समाज में राजस्थान के गोडवाड़ की पंचतीर्थी नाडोल की दुर्भाग्यपूर्ण पटाखा घटना ने हमें आत्ममंथन का अवसर दिया है। धर्म और समाज सेवा का वास्तविक उद्देश्य क्या है? क्या कुछ दिनों की अस्थायी सजावट और आडंबर धर्म की सेवा हैं,या फिर समाज के स्थायी विकास के लिए सामूहिक प्रयास ही धर्म का सच्चा रूप है? जिस धन को हम पांडालों, आतिशबाजी और अल्पकालिक भव्यता पर खर्च करते हैं, उसी धन से यदि हम गांवों की गलियों की सफाई, मकानों की बाहरी दीवारों की रंगाई-पुताई और स्थायी स्वच्छता अभियान चलाएं, तो न केवल गांव का स्वरूप सुंदर बनेगा, बल्कि समाज के विकास में एक नई चेतना का संचार होगा।
आडंबरहीन जीवन ही मोक्ष का मार्ग दिखाता हैं। भगवान महावीर ने सादगी और अहिंसा का जो संदेश दिया, वह हमें दिखावे से दूर रहकर आत्मिक शांति की ओर ले जाता हैं। स्वच्छता और सुंदरता केवल बाहरी रूप से ही नहीं, बल्कि हमारे विचारों और कर्मों में भी झलकनी चाहिए। अगर गांव स्वच्छ, सुंदर और रंगीन दीवारों से सुसज्जित होंगे, तो वे न केवल एक आदर्श गांव की छवि पेश करेंगे, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा भी बनेंगे।
मोक्ष का वास्तविक मार्ग त्याग, करुणा और समाज के लिए स्थायी भलाई में निहित हैं। धर्म का कार्य दिखावे में धन गंवाना नहीं, बल्कि समाज के हित में उसे लगाना हैं। हमें यह समझना होगा कि एक सुंदर और आडंबर मुक्त गांव ही सच्चे धर्म और मोक्ष के मार्ग की ओर पहला कदम है। इसलिए, अब समय आ गया हैं कि हम दिखावे को छोड़कर सामूहिक विकास, स्वच्छता और सौंदर्य को धर्म का वास्तविक स्वरूप मानते हुए समाज को एक नई दिशा दिखाएं।