डॉ. दीनदयाल मुरारका
एक व्यक्ति एक गांव में गया। वह जब वहां की श्मशान भूमि से गुजर रहा था तो उसने एक विचित्र बात देखी। वहां पर पत्थर के पट्टियों पर मृतक का नाम एवं उसकी आयु लिखी थी। किसी पर ६ महीने, किसी पर १० वर्ष, तो किसी पर २१ वर्ष। उसे लगा कि इस गांव के लोग जरूर अल्पायु होते हैं। जब वह गांव के भीतर गया तो लोगों ने उसका खूब सत्कार किया। वह वहीं रहने लगा, लेकिन एक डर उसके मन के भीतर समा गया था कि यहां रहने पर उसकी जल्दी मौत हो जाएगी। क्योंकि यहां के लोग कम जीते हैं इसलिए उसने वहां से दूसरे गांव जाने का पैâसला किया।
जब गांव वालों को उसके जाने का पता चला तो वे लोग बहुत दुखी हुए। उन्हें लगा कि जरूर उन लोगों से कोई गलती हो गई है। जब उस व्यक्ति ने गांव वालों को अपने मन की बात बताई, तो सभी लोग हंस पड़े।
उन्होंने कहा कि हमारे बीच में ६० से ८० साल तक के लोग जीवित हैं, फिर आपने वैâसे सोच लिया कि यहां लोग जल्दी मर जाते हैं? तब उस व्यक्ति ने श्मशान में स्थित पत्थर की पट्टियों के बारे में बताया। इस पर गांव वालों ने कहा कि हमारे गांव में एक नियम है। प्रतिदिन जब कोई व्यक्ति सोने के लिए जाता है, तो सबसे पहले वह उस दिन का हिसाब लगाता है कि उसने कितने समय सत्संग में बिताया, कितने समय अच्छे कार्य में लगाया और उसे वह डायरी में लिखता है।
गांव में किसी के मरने के बाद वो डायरी निकाली जाती है, फिर उसके जीवन के उन सभी घंटों को जोड़ा जाता है। उन घंटों के आधार पर ही उसकी उम्र तय की जाती है और फिर उसे पत्थर पर अंकित करके श्मशान में लगा दिया जाता है। उस व्यक्ति का जितना समय सत्संग में बीता था। वही तो उसका सार्थक समय है। वही उसकी सच्ची आयु है। ऐसा करने से हमारे गांव वालों को प्रेरणा मिलती है कि वे अधिक से अधिक अच्छा काम करें, अधिक से अधिक समय सत्संग में बिताएं। ताकि वह भी दूसरों के लिए प्रेरणा बन सकें।