कविता श्रीवास्तव
क्या महिलाओं, युवाओं के खाते में रुपए डालने की योजनाएं देश के विकास और अनुसंधान बजट को कम कर रही हैं? विभिन्न राज्यों में किसानों की ऋण माफी और कुछ वर्गों को मुफ्त यात्रा, मुफ्त बिजली व ऐसी अन्य योजनाएं क्या अन्य क्षेत्रों के बजट को प्रभावित कर रही हैं? आरबीआई की रिपोर्ट ने इसी बात को फोकस किया है। यह रिपोर्ट एक तरह से महिलाओं और युवाओं के लिए राज्यों की ओर से घोषित योजनाओं को लाल झंडा दिखाती है। बीते कुछ समय से हम देख रहे हैं कि विभिन्न सरकारें और राजनीतिक दल चुनावी लाभ के ल्एि लोगों के खाते में रुपए डालने की योजनाएं लागू करते जा रहे हैं। सवाल यह है कि यह खर्च आखिर आता कहां से है? आरबीआई विभिन्न कोषों में घाटे की ओर समय-समय पर संकेत करता रहता है। यह संकेत समझकर सरकारों को अपनी योजनाओं को सकारात्मक दिशा देने की जरूरत होती है। देश में अत्यंत जरूरतमंदों को राशन की सामग्री मिले यह जरूरी है। संसाधनहीन जरूरतमंदों को आर्थिक मदद भी मिलनी चाहिए, लेकिन इसके साथ योजनाएं ऐसी भी बनें कि लोगों को कमाने का रास्ता दिखे। उनकी आय का स्रोत बने उन्हें भी देश की मुख्यधारा से जोड़ा जाए। उन्हें संसाधनों से वंचित न रखा जाए। केवल रकम देने से उनकी कार्य क्षमता बढ़ेगी यह सुनिश्चित नहीं है। ऐसी योजनाओं की आड़ में कई ऐसे लोग भी लाभ उठा रहे हैं जिन्हें इसकी आवश्यकता नहीं है। वर्तमान में जो योजनाएं लागू हुई हैं। इसका बोझ कौन वहन करता है? निश्चित रूप से यह राजकीय कोष से खर्च होने वाली रकम है। इसका उपयोग विकास की योजनाओं तथा संसाधनों के विकास के लिए होना चाहिए, लेकिन हम देख रहे हैं कि चुनाव के ठीक पहले आनन-फानन में लोगों के खाते में रकम पहुंचाने की योजनाएं लागू हो रही हैं जैसे कभी ‘लाडली बहन’, ‘कभी लाडला भाई’ तो कभी ‘लाडले वरिष्ठ नागरिक’ और न जाने क्या-क्या! इन योजनाओं से सीधे रकम मिलने पर लोग भी खुश हैं। बिना किसी कारण सरकारी पैसे बांट रहे हैं, इससे बड़ी खुशी की बात क्या हो सकती है, लेकिन उनकी तो सोचिए जो इन योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते हैं। जो ईमानदारी से टैक्स भरते हैं, अपने परिश्रम से रोजगार करते हैं और किसी तरह की योजना का लाभ भी नहीं ले सकते हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों को अवश्य मिले, लेकिन इसमें भेदभाव नहीं होना चाहिए। देश में कई श्रमिक, स्वयं रोजगार करने वाले लोग, छोटे-मोटे कामकाज करके जीवनयापन चलाने वाले आदि लोग भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन जीते हैं। अत्यंत कम कमाकर भी ऐसे कई लोग आयकर रिटर्न भी दाखिल करते हैं। इसी वजह से वे अनेक योजनाओं का लाभ नहीं ले सकते हैं, जबकि उन्हें भी इसकी आवश्यकता होती है। कुछ लोगों के वोट की खातिर अनेक लोगों का हक कम किया जाए यह उचित नहीं है। आरबीआई जिस वित्तीय घाटे की ओर इशारा कर रहा है उस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।