विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।ऐसा अमूमन मुंबई माफिया में होता नहीं है…
हत्या कोई और करे, लेकिन नाम किसी और का चढ़े…
हत्यारे कोई और भेजे, उसका जिम्मेदार किसी और को मानें…
हथियार किसी और के इस्तेमाल हों, उसका मालिक किसी और को माना जाए…
…लेकिन फिल्म निर्माता-निर्देशक अजीत देवानी हत्याकांड में कुछ ऐसा ही हुआ। इस पर पुलिस में भी खासा विवाद छिड़ा था।
इस घमासान का असली कारण अपराध शाखा के ही कुछ अधिकारी थे। अधिकारी मानते हैं कि राजन ने दाऊद गिरोह की आर्थिक रीढ़ तोड़ने के लिए देवानी की हत्या करवाई, लेकिन ठेका अबू को दिया था। इसकी पुष्टि के लिए अधिकारी कहते हैं कि ये स्थिति दरअसल मुंबई माफिया में बने नए समीकरणों से उपजी थी। उन दिनों राजन-सालेम-बुदेश की तिकड़ी साथ थी।
बता दें कि ये पुख्ता गठबंधन न था। बस एक-दूसरे की पीठ खुजाने वाला कार्यक्रम था। ये तीनों सरगना आपराधिक कार्यों में एक-दूसरे को सहयोग दे रहे थे। इस तरीके से पुलिस समेत तमाम जांच एजेंसियों को भुलावे में डाल कर उल्लू सीधा कर रहे थे। ऐसे कई संकेत मिले जो साबित करते थे कि देवानी हत्याकांड में दरअसल इसी तिकड़ी का हाथ था, लेकिन काम करवाया राजन ने था। पहली बात तो ये आई कि देवानी हत्या के तुरंत बाद यानि सबसे पहले अपराध शाखा में तैनात एक इंस्पेक्टर घटनास्थल पर पहुंचा। घटनास्थल पर मात्र ५ मिनट के अंदर उसके पहुंचने को संदेह से इसलिए देखा क्योंकि वह राजन से रिश्तों के लिए बदनाम है। इस इंस्पेक्टर का पुराना रिकार्ड है कि उसने जितने गुंडों-गिरोहबाजों का मुठभेड़ में खात्मा किया, वे तमाम राजन विरोधी थे – या नाना कंपनी के बागी थे। इस इंस्पेक्टर ने उच्चाधिकारियों को रिपोर्ट भी नहीं भेजी कि मौके पर क्या देखा; या क्यों वहां गया था। उसने मौके का मुआयना किया, चुपचाप रफूचक्कर हो गया। आरोप लगे कि राजन के कहने पर ये देखने पहुंचा था कि काम पक्का हुआ या नहीं?
जिस तरह पुलिस उपेंद्र, निजाम और अखिलेश को हवाई अड्डे के पास से जिंदा लाई, वह भी संदेह के बीज बोता है। अबू के कहने पर इन गुंडों ने सुपारी जरूर ली, लेकिन गिरफ्तारी के पहले ये बात राजन ने सुनिश्चित की थी कि उन्हें मुठभेड़ में न मारा जाए। इससे तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) मोहिते भी खफा थे कि सभी गुंडों को जिंदा वैâसे पकड़ा गया। गिरफ्तारी दस्ते में भी वो अधिकारी था, जो देवानी हत्याकांड के तुरंत बाद मौका-ए-वारदात पर पहुंचा था। इसे लेकर अपराध शाखा में चर्चाओं का बाजार गर्म रहा। देवानी हत्याकांड की छानबीन पर पुलिस में साफ तौर पर दो फाड़ थे।
अपराध शाखा के एक अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर यह भी कहा कि इस बारे में आला अफसरान को पहले से कुछ पता न था। कनिष्ठ अधिकारियों को विभिन्न सरगनाओं और फिल्मी हस्तियों की अभी भी जारी टेलीफोन टेपिंग के दौरान जानकारी मिली थी कि देवानी की हत्या होगी। इसके बावजूद देवानी को बचाने की कोशिश नहीं हुई। इन पुलिसवालों ने सोचा कि माफिया का एक प्यादा कम होता है तो उन्हें क्या। इसके बाद उपेंद्र और अखिलेश के विमान द्वारा देश के बाहर भागने की जानकारी भी टेलीफोन वार्ता से मिली होगी। इसी आधार पर उन्हें गिरफ्तार किया था।
उन दिनों माफिया में बदले की लड़ाई तेज थी। दाऊद विरोधी सिंडिकेट के संयोजक अली बुदेश की बड़ी सफलता यह थी कि उसने राजन और सालेम में समझौते की कोशिश की। समझौते के तहत अब वे तीनों आपसी हित साधने और डी-कंपनी को नुकसान पहुंचाने के लिए आपस में मारकाट नहीं मचाएंगे। अब वे आपराधिक गतिविधियों में तालमेल रखेंगे। पुलिस व जांच एजेंसियों को भुलावा देने के लिए जो काम एक गिरोहबाज को करना होगा, उसे दूसरे से करवाएंगे। इसके लिए काम करने वाले गिरोहबाज को तय रकम मिलेगी या बदले में वह कोई काम दूसरे से करवा सकेगा।
इसी समझौते का फायदा उठाते हुए राजन ने देवानी का खात्मा करवाया। उसने अली के जरिए अबू से कहा कि दाऊद साम्राज्य को भारी झटका देने के लिए देवानी का खात्मा जरूरी है। इससे अबू का फिल्मी दुनिया में फिर आतंक छा जाएगा। वह फिल्मी हस्तियों के लिए आफत का परकाला बन जाएगा और हफ्ते में मोटी रकम पीट सकेगा। यह संदेश सबके पास पहुंचेगा कि डी-कंपनी से अलग होकर भी उसकी ताकत कम नहीं हुई है।
कहते हैं कि यह बात अबू को समझ में आई। उसने देवानी हत्याकांड की हामी भर दी। हफ्तावसूली विरोधी शाखा के अधिकारियों ने देवानी हत्याकांड में एक बमकांड आरोपी अय्यूब पटेल को गिरफ्तार कर सबको चौंकाया। उन्होंने दावा किया कि इसने हत्यारों को सहायता दी थी। वह देवानी हत्याकांड में गिरफ्तार चौथा आरोपी था। छह आरोपी तब तक फरार थे। कुछ आरोपियों को पकड़ने के लिए अपराध शाखा के दस्ते उत्तर प्रदेश गए, लेकिन सफल न हो सके।
पूरी बात तब तक किसी को पता नहीं थी, लेकिन एक मुखबिर बोल पड़ा:
– खाली फोकट बिल फट गया भाय।
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)