भारतीय चुनाव आयोग लोकतंत्र का हत्यारा है और मोदी-शाह की सरकार इन हत्यारों को सुपारी देने का काम कर रही है। जिस तरह से चुनाव के नतीजे घोषित किए जा रहे हैं, उस पर मतदाताओं को भरोसा नहीं है। आपका दिया हुआ मत वास्तव में किसके पास गया? जिसका बटन दबाया उसके पास या दबाया एक का और वोट गया सिर्फ कमल के पास, इसे लेकर हंगामा जरूर मचा है और महाराष्ट्र समेत देश के कई हिस्सों में लोग ‘ईवीएम’ के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। इस संबंध में कुछ लोग अदालत गए और जैसे ही अदालत ने चुनाव आयोग से ‘रिकॉर्ड’ मांगा, आयोग के होश उड़ गए और सरकार ने ‘ईवीएम’ घोटाले को उजागर होने से रोकने के लिए नियमों में बदलाव कर दिया। मोदी-शाह सरकार ने अब यह फरमान जारी कर दिया है कि भारत का कोई भी नागरिक सूचना के अधिकार के तहत भी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड नहीं मांग सकता है और इस बात पर मुहर लगा दी है कि वे डरे हुए हैं और ईवीएम घोटाला करके ही चुनाव जीते हैं। इस मामले में केंद्रीय कानून मंत्रालय ने खुलेआम गोबर खाया। चुनाव संचालन नियम, १९६१ के नियम ९३ (२) (ए) में जल्दबाजी में किए गए बदलाव ने लोकतांत्रिक नागरिकों के लिए चुनाव आयोग के दरवाजे बंद कर दिए। चुनाव से संबंधित कोई भी दस्तावेज नागरिकों को उपलब्ध नहीं होगा। यानी चुनाव आयोग की मदद से मोदी-शाह टीम द्वारा की गई हेराफेरी उजागर नहीं होगी। ईवीएम पूरी दुनिया से बाहर हो गया है। ईवीएम की दुकान सिर्फ भारत में ही जारी रखी गई है। क्योंकि ‘ईवीएम है तो मोदी-शाह हैं।’ अगर ईवीएम नहीं होंगी तो भाजपा का आंकड़ा डेढ़ सौ भी पार नहीं होगा। इसलिए दुनिया द्वारा नकार दी गई ईवीएम व्यवस्था भाजपा ने भारत में जारी रखी है। ‘फॉर्म १७ए’ ‘ईवीएम’ चुनाव का अहम हिस्सा है। यह देखना जरूरी होता है कि मतदाता सूची और वास्तविक मतदान मेल खाते हैं या नहीं। महाराष्ट्र में चौंकाने वाले नतीजों के बाद कई उम्मीदवारों ने चुनाव अधिकारियों से ‘१७ए’ की मांग की और प्रत्यक्ष तौर पर ईवीएम से बाहर निकले
वोटों की गिनती की मांग की।
यह मांग होते ही कई जगहों पर गोलमाल जवाब मिलने लगे। चुनाव अधिकारियों के पास छिपाने का कोई कारण नहीं था। बूथ पर हुए मतदान और वास्तविक ईवीएम के आंकड़े मेल खाते हैं, इतना ही देखना है और उसके लिए ‘१७ए’ की मांग करना क्या गलत है? लेकिन इन दस्तावेजों को देने से मना कर दिया गया और अंत में कहा गया कि ‘ये दस्तावेज’ आपको ४५ दिनों के बाद मिलेंगे। यह सीधे तौर पर घोटाला है। कोर्ट ने याचिका दायर करने के लिए ४५ दिन का समय दिया है। ये दस्तावेज ईवीएम घोटाले का सबूत हैं, लेकिन अगर ये दस्तावेज उपलब्ध नहीं होने वाले हैं, तो चुनाव याचिका का कोई मतलब नहीं है और अदालत पहली सुनवाई में याचिका खारिज कर देगी। यह जानकर कि महाराष्ट्र और झारखंड के हारे हुए उम्मीदवार ‘ईवीएम’ घोटाले के ‘१७ए’ फॉर्म पर काम कर रहे हैं, मोदी-शाह और उनके महामंडल के हाथ-पांव फूल गए। इस डर से कि ‘१७ए’ ढूंढने वाले उनके घोटाले की नाड़ी खींच लेंगे, भागदौड़ शुरू हो गई। अगर आम लोग ‘१७ए’ के हथियार का इस्तेमाल करने लगें तो वे चुनाव घोटाला कर जीते हैं और सत्तानशीन हुए हैं, इसका खुलासा तो हो ही जाएगा और भले ही वे कितने भी बेशर्म क्यों न हों जाएं, उन्हें दुनियाभर में लोकतंत्र के लफंगा के तौर पर ही जाना जाएगा, इस डर से उनके पांव थरथराने लगे। इसलिए जिस नियम से ईवीएम के घोटाले का पर्दाफाश हो सकता था, उस‘Rule 93(2)(a) of the 1961 Conduct of Election Rules’ को तोड़ मरोड़ कर बदल दिया। इस नियम के अनुसार,‘All other papers relating to the election shall be open to the public inspection’ (चुनाव से संबंधित अन्य सभी कागजात सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले होंगे) यह नियम था, उस नियम की हत्या करके अब‘not all poll- related papers can be inspected by the public. Only those papers specified in the conduct of election Rules can be inspected by the public’ (चुनाव से संबंधित सभी कागजात का जनता द्वारा निरीक्षण नहीं किया जा सकता है। केवल उन कागजात का जनता द्वारा निरीक्षण किया जा सकता है जो चुनावी नियम आचरण में निर्दिष्ट हैं।)इस तरह का बदलाव करके ‘ईवीएम’ चुनाव
घोटाले को छुपाने के लिए
मोदी-शाह ने प्रयास किया है। इसका मतलब है कि महाराष्ट्र विधानसभा परिणाम में और हरियाणा, ओडिशा, बिहार लोकसभा परिणाम में घोटाला कर ये लोग सत्ता में आ गए हैं। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को हरियाणा विधानसभा चुनाव से संबंधित सीसीटीवी फुटेज और ‘फॉर्म १७ सी के भाग १ और भाग २’ दस्तावेज जमा करने का निर्देश दिया था। इन दस्तावेजों को ‘सार्वजनिक’ करने को भी कहा गया। ९ दिसंबर को कोर्ट द्वारा पारित आदेश सरकार की चुनावी जीत का वस्त्रहरण करने वाला साबित हो सकता था। इसीलिए मोदी सरकार ने जल्दबाजी में चुनाव नियमों में उपरोक्त अनुसार बदलाव किया और पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश लागू न हो सकें, ऐसी व्यवस्था कर दी। मोदी-शाह ने संसद में संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का अपमान तो किया ही लेकिन चुनाव आयोग ने लोकतांत्रिक मूल्यों की जानकारी देने वाले नियमों पर रोक लगाकर डॉ. आंबेडकर के संविधान पर ही हमला कर दिया। फिर, यह सब खुलेआम होने के बावजूद हमारी अदालतें संविधान का गला घुटते, उदासीन भाव से देख रही हैं। हिटलर, मुसोलिनी ने जो अपने देश में किया वही भारत में हो रहा है। हिटलर, मुसोलिनी भारी बहुमत से चुनाव जीतते थे, लेकिन उनकी जीत वास्तविक नहीं होती थी। भारत में भी ऐसा ही हुआ है। सुप्रीम कोर्ट लाचार है या सरकार का गुलाम है। चुनाव आयोग सरकारी चोर मंडल का हाथ बन गया है और लोग न्याय के लिए अपना सिर दीवार पर पटक रहे हैं। मोदी-शाह-फडणवीस ने लोकतंत्र की नसबंदी कर दी है, न्यायिक अधिकारों की नाकाबंदी कर दी है। लोग ‘बैलट पेपर’ यानी मतदान पत्र पर चुनाव चाहते हैं, लेकिन मोदी-शाह ईवीएम चाहते हैं। क्योंकि उन मशीनों से घोटाला संभव है। एक बार फिर घोटाला उजागर करने वाले फॉर्म ‘१७ ए’ का नियम बदला गया, जनता के संघर्ष को कौन पूछ रहा है? चुनाव आयोग चोर है! भाजपा और उसके विजयी सहयोगियों को इन अक्षरों को अपने माथे पर गुदवाना चाहिए। लोगों के ‘१७ए’ के अधिकार को नकारना न केवल संविधान की हत्या है बल्कि डॉ. आंबेडकर के अस्तित्व की हत्या है!