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गणतंत्र दिवस परेड में महाराष्ट्र की झांकी क्यों नहीं? … मोदी-शाह को इस राज्य से इतनी नफरत क्यों? … संजय राऊत ने उठाया सवाल

सामना संवाददाता / मुंबई
खुद की शिवसेना कहते हुए घूमनेवाले उप मुख्यमंत्री शिंदे को फडणवीस और भाजपा से पूछना चाहिए कि गणतंत्र दिवस परेड में महाराष्ट्र की झांकी क्यों नहीं है। इस राज्य के उप मुख्यमंत्री और खुद को शिवसेनाप्रमुख कहनेवाले को देवेंद्र फडणवीस के दरवाजे पर खड़े होकर पूछना चाहिए कि महाराष्ट्र जैसे राज्य की झांकी को क्यों हटाया गया। क्या ईवीएम से जीत हासिल करने के बाद भी मोदी और शाह की महाराष्ट्र के प्रति नफरत खत्म नहीं हुई है? कला के क्षेत्र में महाराष्ट्र का स्थान ऊंचा है। देश के राजपथ पर हमारी झांकियों ने क्रांति ला दी है। जब गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार है तो फिर महाराष्ट्र क्यों नहीं? इस तरह का जोरदार हमला शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नेता व सांसद ने किया।
मीडिया से बातचीत में सांसद संजय राऊत ने पालकमंत्री पद को लेकर चल रहे खींचतान पर भी तंज कसा है। उन्होंने कहा कि उप मुख्यमंत्री की तबीयत फिर से बिगड़ गई है और वे अपने गांव चले गए हैं। संजय राऊत ने तंज कसते हुए कहा कि मुझे इस बात की चिंता है कि उनकी तबीयत लगातार बिगड़ रही है। यह पता नहीं कि आखिरकार फडणवीस ने उन पर क्या जादू किया है। एक हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति लगातार कैसे बीमार पड़ रहा है? इस तरह का तीखा सवाल भी उन्होंने इस दौरान किया।
पालकमंत्री पद को लेकर भी लगाई फटकार
संजय राऊत ने पालकमंत्री पद को लेकर भी फटकार लगाई। उन्होंने कहा कि आघाड़ी अथवा युति सरकार में इस तरह की बातें होती रहती हैं। इसमें कोई अपवाद नहीं है। महायुति में शामिल पार्टियां चाहे जितनी भी बातें करें, हम एक विचार से एकजुट हैं, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। वे सत्ता के लिए एक साथ आए हैं। अपने-अपने लोगों को पद मिले। मलाईदार विभाग मिले, अपने-अपने दलों के गुल्लक भरने के लिए एक साथ आकर सरकार का गठन करते हैं। संजय राऊत ने सवाल पूछते हुए कहा कि मुंबई का पालकमंत्री पद किसी को भी मिला, लेकिन क्या मराठी लोगों को सस्ता घर मिलेगा? संजय राऊत ने कहा कि बीड के पालकमंत्री पद चाहे किसी भी मुंडे को मिले, लेकिन क्या संतोष देशमुख को न्याय मिलेगा? परभणी का पालकमंत्री पद किसी को भी मिले पर क्या सोमनाथ सूर्यवंशी को न्याय मिलेगा?

उन्होंने कहा कि पालकमंत्री पद का कोई भी फायदा नहीं होता है। केवल सत्ता अपने पास रहे। इसके लिए उन जिलों की वित्तीय सूत्र भी खुद के पास रहे इसलिए पालकमंत्री पद चाहिए। कुछ लोगों को गढ़चिरौली का पालकमंत्री पद हमेशा के लिए चाहिए था। उन्हें नक्सलवाद का खात्मा कतई नहीं करना था, बल्कि वहां माइनिंग कंपनियां है, वहां की मलाई मिले इसलिए ली थी।

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