मुख्यपृष्ठअपराधमुंबई का माफियानामा :  ‘डीएस’ को ‘डी’ का सलाम

मुंबई का माफियानामा :  ‘डीएस’ को ‘डी’ का सलाम

विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।

दाऊद इब्राहिम की ऐसी शख्सियत बन चली कि उसका साक्षात्कार लेने के लिए सब परेशान होते…
करीम और मस्तान के बड़े-बड़े साक्षात्कार तत्कालीन अखबारों-पत्रिकाओं में शाया हो चुके थे…
दाऊद का एक भी ऐसा साक्षात्कार तब तक नहीं छपा था…
पत्रकार भी दाऊद से मारकाट भरे जीवन की बातें करना चाहते थे…
वे यह भी जानना चाहते थे कि वो सबसे अधिक सम्मान या इज्जत किसकी करता है…
अगर वो इस नामुराद पेशे में न होता तो क्या करता…
…वो अगर किसी एक व्यक्ति को चाहता तो वह कौन होता?
एक बार दाऊद यानी डी ने कहा था कि अगर सुधरने का एक मौका मिले… और उसे अगर कस्टम्स में काम करने का मौका मिले… अगर उसे अपने तर्इं तय करने का हक मिले कि वो कहां काम करे… तो वह निश्चित तौर पर दयाशंकर के मातहत बतौर इंस्पेक्टर काम करना चाहेगा।
डीएस के लिए डी के मन में कभी नफरत नहीं रही, जबकि उन्होंने दर्जनों बार उसका माल पकड़ा…
नूरा के निकाह के दिन ही अनीस को गिरफ्तार कर साथ ले गए…
दाऊद को पकड़कर गले में फंदा डालकर दफ्तर की छत पर सारी रात खड़े रखा…
फिर भी आलम ये कि डीएस के लिए डी के मन में इस कदर सम्मान था।
डीएस की कहानी का ये हिस्सा सुनाते हुए इस अधेड़ उम्र बंदे की आंखों में गजब की चमक दिखी। वे कहते हैं:
– लोहा लोहे को काटता है भाई साहब। डी को डीएस ही काट सकते थे।
(एबी की जुबानी)

(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

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