श्रीकिशोर शाही मुंबई
हिंदुस्थान में कानून का राज है। मगर कई बार कुछ अपराध के समक्ष कानून बेबस भी नजर आता है। मसलन डिजिटल सेक्टर में अपराधी ठगने के नए-नए पैंतरे निकाल रहे हैं और उस हिसाब से कानून भी बनाए जा रहे हैं, फिर भी इसका उल्लंघन करनेवाले आगे चल रहे हैं। इसी तरह अगर कोई शख्स किसी जीवित शख्स के साथ दुष्कर्म करता है तो उसके खिलाफ तमाम धाराएं हैं और दोषी पाए जाने पर उसे सजा भी मिलती है। पर कोई शख्स यदि किसी शव के साथ दुष्कर्म करता है तो अदालत भी बेबस नजर आती है, क्योंकि कानून में इस अपराध की कोई व्याख्या या प्रावधान ही नहीं है। हाल ही में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान स्वीकार किया कि किसी लाश के साथ यौन संबंध बनाना सबसे जघन्य कृत्यों में से एक है, लेकिन यह अपराध अब समाप्त हो चुकी आईपीसी की धारा ३७६ या पॉक्सो एक्ट के तहत नहीं आता है।
मामला छह साल पुराना है। १८ अक्टूबर २०१८ को छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में एक नौ साल की बच्ची लापता हो गई थी। बच्ची गरीब परिवार की थी और उसकी मां एक अधिकारी के घर में काम करती थी। मां ने उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दीr। पुलिस ने जब तलाश शुरू की तो डॉग स्क्वाड की मदद से दो दिन बाद बच्ची का शव एक गड्ढे में दबा मिला। इसके बाद पुलिस ने तफ्तीश तेज की और अपराधियों के गिरेबान तक पहुंच गई। पुलिस ने दो आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। आरोपियों के खिलाफ हत्या एवं बच्ची के शव के साथ दुष्कर्म करने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे। पूछताछ में दोनों ने बच्ची के अपहरण, दुष्कर्म और हत्या की बात स्वीकार की। ट्रायल कोर्ट ने आईपीसी की धारा ३७६ (३), ३०२, ३६३, और २०१ सहित अन्य धाराओं में दोषी ठहराते हुए एक आरोपी को उम्रवैâद और दूसरे आरोपी को सबूत मिटाने के आरोप में धारा २०१ के तहत सात साल की सजा सुनाई। लोअर कोर्ट के इस पैâसले को दोनों आरोपियों ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने यह कहते हुए इन आरोपियों की याचिका खारिज कर दी कि ट्रायल कोर्ट का पैâसला सही है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी माना कि भारतीय कानून में शव के साथ दुष्कर्म के मामलों के लिए कोई स्पष्ट सजा का प्रावधान नहीं है। वैसे हैरानी की बात है कि एक नाबालिग बच्ची के अपहरण व हत्या में दोनों को पॉक्सो के तहत फांसी की सजा मिलनी चाहिए थी, मगर ट्रायल कोर्ट ने थोड़ी नरमी बरतते हुए उन्हें सिर्फ वैâद की सजा ही सुनाई थी।