बीमा योजनाओं पर लागू जीएसटी दरें इन दिनों राजनीतिक बहस का मुख्य केंद्र बन गई हैं। टर्म जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा जैसे आवश्यक उत्पादों पर १८ फीसदी जीएसटी दर को लेकर जनता और विपक्षी दलों के बीच तीखी प्रतिक्रिया देखी जा रही है। विपक्ष इसे मध्यम वर्ग और वरिष्ठ नागरिकों पर बढ़ते कर बोझ के रूप में देख रहा है जबकि सरकार इसे राजस्व संग्रह के लिए अनिवार्य ठहरा रही है। विशेष रूप से परंपरागत एंडोमेंट पॉलिसियों पर पहले वर्ष ४.५ प्रतिशत और उसके बाद २.२५ प्रतिशत जीएसटी की दर को लेकर निवेशकों में असमंजस की स्थिति है। एंडोमेंट योजनाएं बचत और बीमा का मिश्रण हैं, लेकिन इनमें पारदर्शिता की कमी के कारण ग्राहकों को यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि उनके प्रीमियम का कितना हिस्सा बचत-निवेश में जा रहा है और कितना बीमा व अन्य खर्चों में कट रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि एंडोमेंट पॉलिसियों को नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) आधारित बनाया जाए, तो यह समस्या दूर हो सकती है। एनएवी आधारित मॉडल में प्रीमियम के निवेश वाले हिस्से को यूनिट्स के रूप में दर्शाया जा सकता हैं, जिससे यह ‘दूध’ की तरह साफ और पारदर्शी होगा। उदाहरणार्थ यदि किसी ग्राहक का प्रीमियम १ लाख रुपए है और उसमें से ७० हजार रुपए निवेश में जाता है तो यह राशि यूनिट्स के रूप में दिखाई देगी और इसका मूल्य बाजार प्रदर्शन के अनुसार बढ़ता-घटता रहेगा। प्रीमियम का शेष ३०,००० रुपए जो बीमा सुरक्षा, फंड मैनेजमेंट शुल्क और जीएसटी जैसे खर्चों में कटता है, ‘पानी’ के समान अलग से दिखाया जा सकता है। इससे ग्राहक को पता चलेगा कि उसका पैसा कहां और वैâसे खर्च हो रहा है, इससे कंपनियों के प्रति उनका विश्वास भी बढ़ेगा। हालांकि, वर्तमान म जब पॉलिसी मैच्योरिटी पर अपेक्षाकृत कम राशि मिलती है तो ग्राहक समझ नहीं पाते कि ऐसा क्यों हुआ। एनएवी आधारित संरचना से यह समस्या खत्म हो जाएगी, क्योंकि निवेश और खर्च का स्पष्ट विभाजन शुरुआत से ही प्रदर्शित होगा। बीमा उद्योग में इस तरह के बदलाव उत्पादों को अधिक आकर्षक और भरोसेमंद बनाएगा। ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ की यह पारदर्शिता बीमा योजनाओं को नई दिशा दे सकती है और जनता के हितों को प्राथमिकता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।