मुख्यपृष्ठस्तंभदेश-परदेश : ढाका को न सौंपें शेख हसीना

देश-परदेश : ढाका को न सौंपें शेख हसीना

नौशाबा परवीन
भारत के समक्ष एक बड़ी डिप्लोमेटिक समस्या खड़ी हो गई है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत से आधिकारिक तौर पर अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है। भारत के विदेश मंत्रालय ने इस बात की पुष्टि की है कि उसे बांग्लादेश से लिखित (नोट वर्बल) में शेख हसीना के प्रत्यर्पण का आग्रह मिला है, लेकिन उसने इस संदर्भ में इससे अधिक कोई टिप्पणी नहीं की है, जिससे यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि नई दिल्ली इस मांग पर निकट भविष्य में तो कोई पैâसला लेने नहीं जा रही है। दूसरी ओर भारत के ४०० से अधिक प्रमुख नागरिकों, जिनमें पूर्व डिप्लोमेट्स भी शामिल हैं, ने नई दिल्ली में बांग्लादेश के उच्चायुक्त के माध्यम से बांग्लादेश के नागरिकों को खुला पत्र लिखकर वहां धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध बढ़ती हिंसा पर गहरी चिंता व्यक्त की है और इस बात पर बल दिया है कि बांग्लादेश को स्थिर, लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष देश बनाए रखने में ही दोनों देशों के साझा हित सुरक्षित रह सकते हैं। अंतरिम प्रशासन में अतिवादी तत्वों के प्रभाव के विरुद्ध भी पत्र में चेताया गया है कि इनकी वजह से बांग्लादेश के संस्थापक मूल्य बदल सकते हैं।
कूटनीतिक नोट
गौरतलब है कि शेख हसीना के आधिकारिक प्रत्यर्पण आग्रह से पहले बांग्लादेश में उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया गया। उन पर आरोप है कि छात्रों के विरोध-प्रदर्शन को कुचलने के लिए उन्होंने ‘मानवता के विरुद्ध अपराध किए’ जिसकी वजह से अगस्त २०२४ में उनका पतन हुआ और वह हवाई जहाज से दिल्ली में शरण लेने के लिए आ गर्इं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की ‘मानवता के विरुद्ध अपराध मामलों में’ शेख हसीना के प्रत्यर्पण की इच्छा के संदर्भ में विदेश मामलों के सलाहकार मुहम्मद तौहीद हुसैन का कहना है, ‘हमने नोट वर्बल के माध्यम से भारत को सूचना दी है।’ नोट वर्बल का अर्थ है एक कूटनीतिक नोट जो एड-मेमोयर से अधिक औपचारिक और नोट से कम औपचारिक होता है, तीसरे व्यक्ति में तैयार किया जाता है और कभी हस्ताक्षरित नहीं होता है।
अनुमान यह है कि भारत सरकार इस सिलसिले में किसी समय अधिक विस्तृत प्रतिक्रिया व्यक्त करेगी जो कि कानूनी व कूटनीतिक नजरिए से भरी होगी, लेकिन बांग्लादेश के आग्रह पर निकट भविष्य में कोई पैâसला होता हुआ नजर नहीं आ रहा है। ध्यान रहे कि भारत और बांग्लादेश के बीच २०१३ से प्रत्यर्पण समझौता मौजूद है। लेकिन इसके तहत कोई भी कार्यवाही लंबी व जटिल हो सकती है; क्योंकि शेख हसीना निश्चित रूप से प्रत्यर्पण के इस आग्रह को अदालत में चुनौती देंगी। साथ ही भारत को भू-राजनीति से संबंधित कानूनी कमिटमेंट्स को भी संतुलित करना होगा। भारत के पास प्रत्यर्पण आग्रह को ठुकराने के दो महत्वपूर्ण कारण हैं और वही इस समय भारत की विदेश नीति को अमल में लाने वालों के दिमाग में चल रहे होंगे। एक, बड़ी शक्ति बनने की महत्वकांक्षा रखने वाले देश के लिए यह उचित न होगा कि वह उस साथी से पीठ फेर ले, जिसने लंबे समय तक उसके हितों को साधा हो। दूसरा कारण यह है कि भारत के लिए आवश्यक है कि वह वाम-उदार व्यवस्था को सुरक्षित रखने का प्रयास करे, जिसे बांग्लादेश के दक्षिणपंथी तहस-नहस करके बांग्लादेश को संकट और बर्बादी में झोंकना चाहते हैं।
सोची-समझी साजिश
संभवत: यही वजह है कि भारत के ४०० से अधिक प्रमुख नागरिकों ने बांग्लादेश के नागरिकों के नाम खुला पत्र लिखा है। बांग्लादेश के अधिकांश नागरिक इस पक्ष में हैं कि उनका देश उदार व धर्मनिरपेक्ष बना रहे, जिसमें धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित सभी नागरिकों के अधिकार सुरक्षित रहें। खुले पत्र के कोऑर्डिनेटर पूर्व डिप्लोमेट्स वीणा सीकरी और भास्वती मुखर्जी हैं। उन्होंने बांग्लादेश में सामान्य स्थिति को बहाल करने की मांग की है, जिसमें सभी नागरिक, उनका धर्म चाहे जो हो, बिना डर के रह सकें। इस पत्र पर राजस्थान हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अनिल देव सिंह, सिक्किम हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश व वैâट के अध्यक्ष प्रमोद कोहली, गुजरात हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एसएम सोनी और पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल आदि ने हस्ताक्षर किए हैं। पहले यह अनुमान था कि जिस घटनाक्रम से बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन हुआ, वह स्वत:स्फूर्त था, लेकिन पत्र में दावा किया गया है कि यह सोची समझी साजिश का नतीजा था। न्यूयॉर्क में क्लिंटन ग्लोबल इनिशिएटिव में बोलते हुए मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने पुष्टि की थी कि इन एक्शंस को अंतरिम शासन में शामिल एक सलाहकार ने ‘ध्यानपूर्वक डिजाइन’ किया था।
इसमें शक नहीं है कि बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति अराजक है। सरकार पर भीड़ का राज हावी है। भीड़ जो चाहती है, वह करती है और सरकार मूकदर्शक बनी हुई है। एक निश्चित पैटर्न के तहत लगभग सभी क्षेत्रों- न्यायपालिका, कार्यकारिणी, शिक्षा संस्थानों, मीडिया आदि से जबरन इस्तीफे दिलवाए जा रहे हैं, जिससे कानून लागू नहीं हो पा रहा है, जन व्यवस्था चरमरा गई है और हर तरफ अफरा-तफरी का वातावरण है। हालांकि सेना को पुलिस शक्तियां भी दी गई हैं, लेकिन स्थिति सामान्य नहीं हुई है। जाहिर है कि इस सब पर अंतर्राष्ट्रीय चिंताएं भी हैं, जैसा कि भारत के विदेश सचिव, अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयानों और इंग्लैंड की संसद में चर्चा से स्पष्ट है। बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मसला तो है ही, चिंता उसकी राजनीतिक स्थिरता की भी है। इसका एक ही समाधान है कि बांग्लादेश की जनता अपनी अंतरिम सरकार पर दबाव बनाए कि वह लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के संवैधानिक सिद्धांतों का सख्ती से पालन करे, हिंसा पर तुरंत विराम लगाए और जितना जल्दी हो सके देश में निष्पक्ष चुनाव कराए, ताकि जनता की अपनी सरकार सत्ता संभाल सके। शेख हसीना के प्रत्यर्पण से कुछ हासिल नहीं होने जा रहा है, सिवाय इसके कि उनके कुछ राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के अहंकार को संतोष मिलेगा।
भरोसेमंद दोस्त को बचाएं
बांग्लादेश को जरूरत है कि उसकी अर्थव्यवस्था पटरी पर आए। यह देश में शांति, राजनीतिक स्थिरता और पडोसी मुल्कों विशेषकर भारत से अच्छे व सहयोगी संबंध स्थापित करने से ही मुमकिन है। लेकिन लगता यह है कि बांग्लादेश में जो इस समय अंतरिम सरकार है, वह भारत के साथ टकराव की स्थिति बनाना चाहती है। शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग का यही अर्थ है। स्पष्ट संकेत यही है कि नई दिल्ली किसी भी कीमत पर शेख हसीना को ढाका को नहीं सौंपेगी और उसे सौंपना भी नहीं चाहिए क्योंकि शेख हसीना की वजह से भारत बांग्लादेश के रिश्ते मजबूत हुए और जो लंबे समय से सीमा व जल विवाद चले आ रहे थे, उनका समाधान निकल सका। शेख हसीना भारत की भरोसेमंद दोस्त रही हैं। वे आगे भी भारत के बहुत काम आ सकती हैं। इसलिए नई दिल्ली की यह जिम्मेदारी है कि उनकी सुरक्षा करे, क्योंकि उन्हें ढाका को सौंपने का अर्थ होगा कि उनको फांसी के तख्ते तक पहुंचा देना। बांग्लादेश में शेख हसीना के खून के प्यासे लोग बैठे हैं।

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)

अन्य समाचार