डमरू छंद 

धीरे-धीरे शीत ऋतु का प्रस्थान हो रहा है। बसंत ऋतु का आगमन होने को है। विरहिन की विरह वेदना अपने चरम पर है। वन में कुछ पत्ते पीले पड़ गए हैं तो कुछ पर लाल-लाल कोंपलें झांक रहीं हैं –

वन-वन महकत चहकत जन-जन,
बहकत कदम बजत पग छन-छन।

छन-छन मनमथ करत वदन झर,
अगहन अदहन करत सकल तन।

तन मन चपल नयन परसत मद,
मदन चलत पल-पल शर सन-सन।

सन-सन पवन करत कलरव खग,
कनक कनक जस लगत सकल वन।

सुरेश मिश्र

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