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संपादकीय : देश को गढ़ने वाला नेता

राष्ट्र निर्माण के महानायक डॉ. मनमोहन सिंह का निधन हो गया है। उनके निधन से भारतीय राजनीति में सुसंस्कृत और ईमानदारी का आखिरी पत्ता भी गिर गया। २०२४ के अस्त होते-होते अचानक सूरज अस्त हो गया और अंधेरा पैâल गया। पिछले दस सालों से मनमोहन सिंह सत्ता या राजनीति में सक्रिय नहीं थे, लेकिन जब भी ईमानदारी और सच्चाई का जिक्र होता तो डॉ. सिंह के नाम को सम्मान से लिया जाता। २० साल पहले मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही नवभारत का पुनर्निर्माण शुरू हो गया। इससे पहले नरसिम्हा राव ने जब डॉ. सिंह को वित्त मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी तो कई लोगों ने आपत्ति जताई थी। तब देश की तिजोरी में केवल १६ दिनों के लायक धन था। तब वित्त मंत्री का पद स्वीकार करना बहादुरी की बात थी। नरसिम्हा राव ने भारत की अर्थव्यवस्था एक राजनेता के बजाय एक कुशल डॉक्टर को सौंपकर देश पर उपकार किया। बाद में भारत में हुई आर्थिक क्रांति ने देश में मिडल क्लास के जीवन स्तर को ऊपर उ’ा दिया। बाद में २००४ में जब डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो भारत की अर्थव्यवस्था तिगुनी हो गई। विदेशी निवेश का प्रवाह बढ़ा। विदेशी निवेश २ अरब डॉलर से बढ़कर ३६ अरब डॉलर हो गया। व्यापार निर्यात ६० बिलियन डॉलर से बढ़कर ३२० बिलियन डॉलर पर पहुंच गया। विदेशी मुद्रा भंडार १०० अरब डॉलर से बढ़कर ३१५ अरब डॉलर हो गया। ग्रामीण क्षेत्रों में ५ लाख किलोमीटर सड़कें बनाई गर्इं। मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ही चंद्रयान, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को बढ़ावा मिला। उनके समय में ही मुंबई में मेट्रो परियोजना की नींव रखी गई थी। अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे बनाए गए।
इंदिरा आवास योजना
में लाखों गरीबों को घर मिले। साल में १०० दिन रोजगार की गारंटी देने वाली ‘मनरेगा’ जैसी योजनाएं शुरू की गईं। दूरसंचार क्षेत्र में क्रांति आ गई। ब्रॉड बैंड आया। आ’ करोड़ लोगों को मुफ्त सिलिंडर दिया गया। मनमोहन सिंह ने ये सब धैर्य से और अपना मुंह बंद रखकर किया। डॉ. मनमोहन सिंह ने दिखाया कि बिना शोर-शराबा किए, हंगामा मचाए, लफ्फाजी किए और जुमलेबाजी किए भी देश का नेतृत्व किया जा सकता है। डॉ. मनमोहन सिंह का पूरा जीवन देश के लिए समर्पित था। भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री श्री मोदी प्रचार सभाओं में ८०-८५ करोड़ लोगों को ३० किलो अनाज मुफ्त देने का ढिंढोरा पीटते हैं। यह मूल योजना डॉ. मनमोहन सिंह की थी और इसे डॉक्टर साहब ही लाए थे। २०१३ में, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लाकर सभी को रहने और पर्याप्त खाने का अधिकार दिया। २००५ में मनमोहन सिंह ने लोगों को सूचना का अधिकार दिया। उस अधिकार पर अब हमले किए जा रहे हैं। नोटबंदी मोदी काल में हुई। तब अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने संसद में सिर्फ सात मिनट का भाषण दिया और कहा, ‘नोटबंदी से देश की जीडीपी में दो फीसदी की गिरावट आएगी। नोटबंदी एक सुनियोजित लूट है। इस अवसर पर कुप्रबंधन का एक स्मारक बनाया गया है।’ अगले चार महीनों में देश की जीडीपी में २.१ प्रतिशत की गिरावट आई। देश की सामुदायिक लूट शुरू हो गई और अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई। मजदूर वर्ग और छोटे व्यापारियों की कमर टूट गई। मोदी के कार्यकाल के दौरान रुपये का पूरी तरह से अवमूल्यन हो गया, लेकिन मोदी और उनके लोग लगातार सीमाएं लांघते हुए मनमोहन सिंह और पंडित नेहरू की आलोचना करते रहे। जिस मनमोहन सिंह का पूरी दुनिया
सम्मान करती
थी, उन्हें मोदी और उनके लोग ‘मौनी बाबा’ कहकर मजाक उड़ाते रहे, लेकिन मनमोहन सिंह हमेशा भारत और दुनिया की मीडिया से बातचीत करते रहते थे। प्रधानमंत्री के रूप में अपने १० साल के कार्यकाल के दौरान, उन्होंने देश और विदेश में सवा सौ प्रेस कॉन्फ्रेंस  कीं। इनमें से ७२ प्रेस कॉन्फ्रेंस  उन्होंने अपने विदेश दौरे के दौरान कीं। डॉ. सिंह हमेशा कहते थे, ‘पत्रकारों से बात करते समय मुझे कोई संकोच या डर महसूस नहीं होता।’ और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे पत्रकारों के किसी भी सवाल को टालते नहीं थे। भारत की आर्थिक प्रगति के काल की शुरुआत मनमोहन सिंह ने ही की थी। जुलाई १९९१ में संसद में भाषण देते हुए उन्होंने अत्यंत आत्मविश्वास के साथ भारतीय आर्थिक प्रगति का एक दर्शन प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, ‘No power on earth can stop an Idea whose time has come’ (पृथ्वी पर कोई भी ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती, जिसका समय आ गया है।) उन्होंने कहा कि दुनिया की कोई भी ताकत भारत की प्रगति में बाधा नहीं बन सकती और उन्होंने यह साबित कर दिखाया। भारत के प्रधानमंत्री पद से हटते समय मनमोहन सिंह ने कहा, ‘History will be kinder to me than media’ (मीडिया की तुलना में इतिहास मेरे प्रति अधिक दयालु होगा।) ‘A man with uncommon wisdom, ‘असामान्य ज्ञान वाला व्यक्ति’, इन शब्दों में संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ओबामा ने डॉ. सिंह का सम्मान किया। वह एक ईमानदार सज्जन व्यक्ति थे। सादगी और सत्यनिष्ठा उनकी ताकत थी। उन्होंने भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों से कोई समझौता नहीं किया। पंडित नेहरू के बाद उन्होंने आधुनिक भारत की नए तौर पर नींव रखने का सपना देखा और उस काम को गति दी। राष्ट्र-निर्माता नेता के रूप में उनकी पहचान इतिहास में सदैव अमर रहेगी। आज के हालात देखकर तो यही लगता है कि देश डॉ. मनमोहन सिंह के हाथों में ही सुरक्षित था और रहा। इतिहास और लोग डॉ. मनमोहन सिंह को कभी नहीं भूलेंगे। वे चले गए, लेकिन उनका ज्ञान का भंडार और उनकी राष्ट्रीय सेवा धरोहर के तौर पर सदैव राष्ट्र के पास है।

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