कविता श्रीवास्तव
रिश्ते बड़े विश्वास से स्थापित होते हैं। पति-पत्नी के रिश्तों में एक-दूसरे के लिए समर्पण, त्याग और सहयोग प्रमुख आधार होते हैं। कभी-कभी रिश्तों में टकराव भी हो जाता है। फिर पति-पत्नी ही क्यों हर करीबी रिश्ते में नोक-झोंक, तल्खी और असहमतियां होती हैं, लेकिन अमूमन उन्हें सुलझा लिया जाता है। उन्हें लेकर कोई अपना जीवन बर्बाद कर ले या जीवन को समाप्त ही कर दे तो यह गंभीर सामाजिक समस्या है। नई दिल्ली के मॉडर्न टाउन में कारोबारी पुनीत खुराना ने कथित तौर पर पत्नी और ससुराल पक्ष द्वारा निरंतर सताए जाने के कारण परेशान होकर आत्महत्या कर ली। नए साल के पहले ही दिन यह मामला समाचारों में छाया रहा। यह ठीक वैसी ही आत्महत्या है जो कुछ दिनों पूर्व बंगलुरु में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े टेक्निकल एक्सपर्ट अतुल सुभाष ने की थी। आत्महत्या से पहले दिल्ली के पुनीत ने ५९ मिनट का एक वीडियो बनाकर अपनी आत्महत्या के कारण बताए हैं। बताया गया कि वे पत्नी द्वारा सताए जाने, उकसाने और लगातार परेशान करने से तंग आ गए थे। तलाक का मामला चल रहा था। कुछ दिनों पहले बंगलुरु के सुभाष ने भी अपनी आत्महत्या की वजह बताते हुए ९० मिनट का वीडियो बनाया था, जिसमें आत्महत्या के लिए अपनी पत्नी और ससुराल वालों को दोषी ठहराया था। अब पुलिस कार्रवाई जारी है। हाल के दिनों में तलाक विवाद को लेकर पुरुषों द्वारा आत्महत्या का यह दूसरा ताजा मामला है। दोनों ही मामलों में पुरुष युवा और आर्थिक रूप से संपन्न थे। सवाल उठता है कि जब कानून में सबको हर तरह के मौलिक अधिकार मिले हुए हैं तब इन पुरुषों का मनोबल क्यों टूट गया? अपना जीवन समाप्त करने का पैâसला कोई साधारण पैâसला नहीं है। सारी आशाएं समाप्त होने पर ऐसा होता है। वैसे आधुनिक युग में पैâमिली कोर्ट में तलाक के मामले बहुत ज्यादा बढ़ रहे हैं। युवा पति-पत्नी ही नहीं बड़ी उम्र के लोगों में भी तलाक के मामले बढ़ रहे हैं। इसका मतलब है कि पति-पत्नी एक-दूसरे को समझने, एक-दूसरे को संभालने या एक-दूसरे से रिश्ता निभाने में निश्चित रूप से असहज हो रहे हैं या उनमें एक-दूसरे को बर्दाश्त करने का संयम समाप्त हो रहा है। अक्सर देखा गया है कि पति-पत्नी के बीच रिश्ते बिगड़ने में माता-पिता या अन्य रिश्तेदार भी कारण होते हैं। अदालतों में अक्सर पति-पत्नी के विवाद को खत्म करने के लिए काउंसलिंग की जाती है। प्रयास होता है कि मामला अदालती कार्रवाई के पहले आपसी समझ-बूझ से बाहर ही निपटा लिया जाए, लेकिन फिर भी तलाक के मामले कम नहीं हो रहे हैं। अब आत्महत्या की खबरें चौंका रही हैं। क्या पति-पत्नी के रूप में रह पाने की प्रतिबद्धता को निभाने में लोग असमर्थ होते जा रहे हैं? निश्चित ही यह एक बड़ा सामाजिक प्रश्न है। पारिवारिक और सामाजिक संस्कारों की कमी, रुपया कमाने की प्रतिस्पर्धा और व्यक्तिगत ईगो बढ़ने का चलन भी इन समस्याओं के संभावित कारण हो सकते हैं।