विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।
उन दिनों मुंबई में दो गिरोह बन चुके थे…
संगठित गिरोहों के दो हिस्से हो चुके थे…
कल तक एक-दूसरे पर हमला न करने के लिए वचनबद्ध गिरोहों में…
…आज ‘खून का बदला खून’ नारा मुख्य हो चला था…
समद से दुश्मनी, कस्टम व पुलिस के भारी दबाव, और सबसे बड़ी बात साबिर के साथ न होने के कारण, दाऊद का तस्करी कारोबार खराब होने लगा। मुंबई उसके लिए सुरक्षित ठिकाना नहीं बचा।
अब दाऊद ने मुंबई के बाहर निकलने का मन बनाया। उसने गुजरात के उन ठिकानों की तरफ जाने की योजना बनाई, जहां उसके खिलाफ सीधी कार्रवाई की गुंजाईश न थी। उन दिनों गुजरात के तटवर्ती इलाकों और समंदर पर तस्कर सम्राट लल्लू जोगी और सुकर नारायण बखिया का राज था। पुलिस और कस्टम अधिकारियों की हिम्मत न थी कि बखिया और जोगी के माल पर हाथ डालते… या उनके किसी आदमी को रोकते।
दाऊद को यह पता था, लिहाजा उसने नया दांव खेला। वह दमन पहुंचा और लल्लू जोगी से मिला। बखिया की गिरफ्तारी के बाद जोगी गुजरात में अपने के अकेले दम काम कर रहा था। दमन से वह पूरे गुजरात पर अकेला राज करता था।
दाऊद ने दुबई के शेख हाजी अशरफ और लल्लू जोगी को मिला कर सिंडिकेट बनाया।
उनके बीच तय हुआ कि विदेशों से सोना जमा करने का काम हाजी अशरफ का होगा।
दमन समेत गुजरात में सोने की उतराई और सुरक्षित ठिकानों तक पहुंचाने का काम जोगी के जिम्मे आया।
गुजरात-महाराष्ट्र में सोना व तस्करी का सामान बेचने व धन का इंतजाम करने का जिम्मा दाऊद ने लिया।
यह सिंडिकेट तब तक मजे से काम करता रहा, जब तक कस्टम्स अधिकारी दयाशंकर गुजरात में तैनात न हो गए। दयाशंकर ने इस कदर जोगी और दाऊद का कारोबार चौपट किया, इस तरह उनकी घेराबंदी कर डाली, इस कदर सबको सताया कि दाऊद ने तौबा कर ली।
दाऊद ने जोगी से बात की। उन्होंने तय किया कि दमन के बदले जामनगर से कामकाज करेंगे। दमन सुरक्षित नहीं है। जामनगर में तस्करी के माल की उतराई जस्सू पटेल तथा जाखू काटा को सौंपी। इसमें जोगी शामिल न था। दाऊद ने विदेशी माल लाने की दिशा में पूरा ध्यान लगाया। दुबई से उसने कपड़ा, खाद्य सामग्री, डिब्बाबंद गोश्त, इलेक्ट्रॉनिक्स का वैध कारोबार भी दिखावे के लिए शुरू किया। उसका असली काम सोने की तस्करी जारी रहा।
बाण डोंगरी में इस कथा के समापन पर एक पुरानी कहावत खांटी डोंगरी अंदाज में फिर सुनाई दी:
– बंदर कितना बु़ड्ढा हो जावे, गुलाटी मारना नहीं भूलता भाय…
(क्रमश:)
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)