पौष्टिकता की खुलेगी पोल
सामना संवाददाता / मुंबई
मिड डे मील योजना के तहत स्कूली बच्चों को पौष्टिक भोजन देने का दावा किया जाता है, पर हकीकत इसके उलट है। लंबे समय से यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या वास्तव में बच्चों को सही पोषण मिल रहा है या सिर्फ दिखावा किया जा रहा है। गुणवत्ता की कमी और सही आहार न मिलने के कारण बच्चों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है, परंतु सरकार इस गंभीर मुद्दे को नजरअंदाज कर रही है।
अब, जब इस योजना पर सवाल उठने लगे हैं तो सरकार ने २०२१ से २०२४ तक सरकारी स्कूलों में मिलनेवाले मिड डे मील का ‘ऑडिट’ कराने का पैâसला किया। यह कदम बच्चों के अधिकार की रक्षा करने के लिए उठाया गया है या फिर सरकार की नाकामी को छुपाने का एक तरीका मात्र है, बताना मुश्किल है।
प्राथमिक शिक्षा निदेशालय ने यह ऑडिट बाहरी एजेंसी से कराने की घोषणा की है। पर क्या यह ऑडिट वास्तव में बच्चों को पौष्टिक भोजन दिलाने में मदद करेगा या यह केवल कागजी आंकड़ों का खेल होगा, यह भविष्य में पता चलेगा। सरकार ने यह कदम तब उठाया जब जनता और मीडिया ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। सवाल यह है कि क्या यह ऑडिट स्वतंत्र और पारदर्शी होगा।
निदेशालय ने कहा कि इस ऑडिट में सभी सरकारी स्कूलों को शामिल होना होगा और यह पता लगाया जाएगा कि स्कूलों ने दिशा-निर्देशों का पालन किया है या नहीं। योजना के लिए आवंटित राशि का सही उपयोग हुआ या नहीं, इसकी जांच की जाएगी। यह भी पता लगाया जाएगा कि जो राशि बच्चों के पोषण के लिए निर्धारित की गई, उसका सही उपयोग हो रहा है या नहीं।