मैं देख रहा हूं बच्चे खेल रहे हैं
अपने-अपने खिलौनों से
बच्चे अपना दिल बहला रहे हैं
खिलौने…गुड्डा-गुड्डी नहीं
लाटू-पतंग नहीं, मोटर-रेल नहीं
आज के बच्चों को रिझा रहे हैं
आज के आधुनिक खिलौने
एक के हाथ में है पिस्तौल
दूसरे ने थाम रखी है मशीन गन
तीसरा उड़ा रहा है रॉकेट
चौथा उछाल रहा है बम, गेंद नहीं
हम बड़ों के लिए बेशक ये सारी चीजें
दहशत और मौत का सामान हैं
बच्चों को लिए ये ‘प्लास्टिक के खिलौने’ ही हैं।
मैं देख रहा हूं बच्चे खेल रहे हैं
मैं इन्हें खेलने से मना नहीं करता
“खेलो बच्चों खूब खेलो, देश का गौरव बढ़ाने को खेलो
ओलिंपिक, एशियाड, कॉमनवेल्थ की तैयारी में
‘पदक’ के लिए खेलो, अपने साथ-साथ
देश को विश्वव्य पहचान दिलाने के लिए खेलो
मगर ‘अमन की आशा’ को ध्यान में रखकर खेलो
हार-जीत से परे सौहार्द और भाईचारे की भावना के लिए खेलो…परंतु बच्चों ध्यान रहे,
खेल को खेल ही बना रहने दो ‘एनकॉउंटर’ मत बनने देना…याद रहे खिलौनों का अधिकार
असलहे नहीं छीन सकते हैं
न ही खेल का स्थान युद्ध घेर सकता है।”
-त्रिलोचन सिंह अरोरा