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संपादकीय : हरियाणा, महाराष्ट्र; अब दिल्ली!

दिल्ली विधानसभा चुनाव का कार्यक्रम घोषित हो गया है। ५ फरवरी को वोटिंग होगी और ८ फरवरी को नतीजे आएंगे। प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री शाह, भाजपा के केंद्रीय मंत्रियों ने इस चुनाव में खुद को झोंक दिया है। भाजपा ने केजरीवाल को हराने और दिल्ली विधानसभा पर कब्जा हासिल करने का लक्ष्य बना रखा है। चीन ने लद्दाख में घुसपैठ कर दो गांव बसा दिए। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने १०-१५ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी। मणिपुर में हिंसा थमी नहीं है। महाराष्ट्र जैसे राज्य में दिनदहाड़े हत्याएं हो रही हैं और हत्यारों को सरकार का अभय प्राप्त है। कुल मिलाकर भाजपा की नीति यह है कि इन सभी गंभीर मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना मूर्खतापूर्ण काम है और दिल्ली में आम आदमी पार्टी को हराना सबसे महत्वपूर्ण मसला है। भाजपा ने इसके लिए किसी भी स्तर तक जाने का पैâसला किया है। भाजपा की नीति है कि हम हर जगह जीतेंगे और सत्ता में बैठेंगे। देश में एक नए लोकतंत्र का उदय हुआ है, जो एक भी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को छोड़ना नहीं चाहता और इसका प्रत्यक्ष नमूना देश ने महाराष्ट्र और हरियाणा में देखा। अब बारी दिल्ली की है। दिल्ली की मतदाता सूची में गड़बड़ी है। आम आदमी पार्टी की शिकायत है कि पूर्वांचल के नागरिकों को रोहिंग्या और बांग्लादेशी बताकर हजारों नाम वोटर लिस्ट से बाहर कर दिए गए, लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार इसे मानने को तैयार नहीं हैं। राजीव कुमार ने दिल्ली विधानसभा चुनाव की घोषणा करते हुए कहा, ‘ईवीएम आदि को हैक करने का सवाल ही नहीं उठता।
अमेरिका में एक दफा ईवीएम हैक
हो सकती है, लेकिन भारत में यह संभव नहीं है।’ राजीव कुमार किस दुनिया में रह रहे हैं? क्या ईवीएम घोटाला कर ट्रंप भारी मतों से अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए? सच यह भी है कि टेस्ला के सीईओ एलन मस्क भी यह साबित कर चुके हैं कि ईवीएम को हैक किया जा सकता है। एलन मस्क ट्रंप की वैâबिनेट में शामिल हो रहे हैं और अमेरिका के एक बड़े मंत्री ईवीएम की पारदर्शिता पर सवाल उठा रहे हैं। हमारे चुनाव आयोग को देश की जनता की भावनाओं को समझना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी यानी मोदी-शाह की कोई भी जीत सीधी नहीं होती। उन्होंने हर जीत गलत मार्ग से, घोटाला करके हासिल की है। महाराष्ट्र में भाजपा १३२ सीटों पर चुनाव लड़कर १२० सीटें जीतती है। २०१४ की मोदी आंधी में भी इतनी सीटें नहीं मिली थीं। शिंदे गुट ने महाराष्ट्र में ऐसा कौन सा नायाब काम कर दिया था कि उन्हें ५८ सीटें मिल जाएं। जिस आयोग ने मा. बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना धनुषबाण चिह्न सहित ठाणे के एक कायर को सौंप दिया और शरद पवार के जीवनकाल में ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी घड़ी चिह्न के साथ अजीत पवार के नाम पर कर दी, उस भारतीय चुनाव आयोग कि जुबान से
पारदर्शिता और नैतिकता
की बातें शोभा नहीं देती। लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि मोदी-शाह जैसे लोग कोई अमर पट्टा लेकर नहीं आए हैं। इसलिए दिन बदलते रहेंगे और सबको अपने पापों का हिसाब देना पड़ेगा। दिल्ली विधानसभा चुनाव भाजपा के राज के लिए तीली भी साबित हो सकती है। यह उसके लिए ये जीने मरने का सवाल है। २०२० में ‘आप’ ने ७० में से ६२ सीटें जीतीं और केजरीवाल ने भाजपा को तारे दिखा दिए थे। अब भी मुकाबला भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच ही है। कांग्रेस पार्टी मैदान में है और कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी की बजाय केजरीवाल और ‘आप’ पर हमला कर रही है। दिल्ली के लोगों को इस बात पर हैरानी हो रही होगी। जब देश मोदी-शाह की तानाशाही के खिलाफ लड़ रहा है तो कांग्रेस भाजपा के बजाय ‘आप’ पर कीचड़ उछाल रही है। दिल्ली विधानसभा में पैसों का ही खेल होगा, लेकिन गाड़ियों और हेलिकॉप्टरों की जांच होगी तो सिर्फ विपक्ष की और भाजपा के लोग गाड़ियों और टेंपो में भर-भरकर पैसे ले जाएंगे। लेकिन उन्हें अभय मिलेगा। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। अमित शाह गृहमंत्री हैं। नैतिकता और लोकतंत्र के हित में यही है कि ये दोनों दिल्ली विधानसभा में चुनाव प्रचार से दूर रहें। दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है और नायब राज्यपाल ऐसे प्रदेशों के सर्वेसर्वा होते हैं। लेकिन नायब राज्यपाल फिलहाल गृह मंत्रालय के एजेंट के तौर पर अपना कर्तव्य निभाते नजर आ रहे हैं। आचार संहिता लागू होते ही दिल्ली में मुख्यमंत्री और मंत्रियों की सारी शक्तियां छीन ली जाती हैं, लेकिन दिल्ली के उपराज्यपाल भाजपा के मनमाफिक काम कर रहे हैं। यह खतरनाक है। चुनाव आयोग पारदर्शिता के मामले में नाक से प्याज छील रहा है, लेकिन पर्दे के पीछे भाजपा के फायदे के लिए बहुत कुछ चल रहा है। दिल्ली विधानसभा चुनाव को हाईजैक करने के लिए भाजपा किसी भी हद तक जा सकती है। हम केवल यही सुझाव दे सकते हैं कि लोग सावधान रहें।

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