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मुंबई मेट्रो की धीमी रफ्तार …३ साल बाद मिली फुल स्पीड की रेल सेफ्टी मंजूरी …सरकार के दावों पर सवाल, देरी से यात्रियों का बढ़ा दर्द

सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई मेट्रो की लाइन ७ (रेड लाइन) और लाइन २ए (येलो लाइन) का संचालन शुरू हुए तीन साल से ज्यादा का वक्त हो गया, लेकिन इन लाइनों को अब जाकर चीफ कमिश्नर ऑफ रेल सेफ्टी (सीसीआरएस) से नियमित संचालन की मंजूरी मिली है। यह मंजूरी अब ८० किलोमीटर प्रति घंटा की अधिकतम गति से चलने की अनुमति देती है, जबकि अब तक यह रफ्तार ५०-६० किलोमीटर प्रति घंटा तक सीमित थी।
इस देरी के कारण यात्रियों को तीन साल तक धीमी रफ्तार की मेट्रो से सफर करना पड़ा, जो कि प्रशासनिक लापरवाही और मेट्रो प्रबंधन की कार्यशैली पर सवाल उठाता है। लाइन २ए, जो दहिसर से डीएन नगर तक १८.६ किमी के दायरे में १७ स्टेशनों को कवर करती है और लाइन ७, जो अंधेरी (पूर्व) से दहिसर (पूर्व) तक १६.५ किमी में फैली हुई है, पर रोजाना २.५ लाख यात्री सफर करते हैं। हालांकि, यह सवाल उठता है कि जब मेट्रो ने १५ करोड़ से ज्यादा यात्रियों को सेवा दी है, तो इतनी महत्वपूर्ण मंजूरी पाने में तीन साल का वक्त क्यों लगा?
सरकार के बड़े दावे,
लेकिन हकीकत अलग
सरकार इसे अपनी बड़ी उपलब्धि बताकर श्रेय लेने की कोशिश कर रही है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि यह कदम मुंबई को मिनटों का शहर बनाने की दिशा में बढ़ाया गया है, लेकिन सवाल यह है कि क्या तीन साल की देरी गेम चेंजर कहे जाने लायक है? मेट्रो की इस देरी का सीधा असर आम यात्रियों पर पड़ा है। धीमी गति की वजह से न केवल उनका समय बर्बाद हुआ, बल्कि यातायात का बोझ भी कम नहीं हो सका।

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