मुख्यपृष्ठस्तंभसटायर : बीवी को घूरने में बरकत है

सटायर : बीवी को घूरने में बरकत है

डाॅ रवीन्द्र कुमार

अब यह बात मैं आपको कैसे समझाऊं कि बीवी को घूरने में ही बरकत है। बस इतना ख्याल रखें कि वह आपकी अपनी बीवी हो। मैं इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता जो कॉर्पोरेट हेड होंचो जी ने कही कि आप अपनी बीवी को कब तक घूरेंगे। सर जी ! पूरी पूरी उम्र गुजर जाती है। लोग पागल नहीं हैं जो यूं ही शादी की सिल्वर जुबिली और गोल्डन एनिवर्सरी मनाते फिरते हैं। वो दरअसल घूरने की ही एनिवर्सरी मना रहे होते हैं। आपने शम्मी कपूर जी का वो गाना नहीं सुना

बार बार देखो! हज़ार बार देखो! ये देखने की चीज़ है हमारा दिलरुबा!

लव मैरिज में यह कोई मुश्किल काम भी नहीं। हमारे माता-पिता और दादा-दादी के ज़माने में तो बिना देखे ही शादियाँ होतीं थी और ये घूरने घारने का प्रोग्राम शादी के बाद जीवन पर्यंत चलता था। आप एक इतवार की बात करते हैं यहाँ थोड़ी सी देर होने पर पत्नी परेशान हो जाती है। आप कहाँ रह गए थे ? देखो मैंने कितनी अच्छी साड़ी आपकी लिए पहनी है ! प्लीज आओ और मुझे घूरो। घूरने को आप एक तरह से साइकाॅलाॅजी का ‘पॉज़िटिव स्ट्रोक’ समझो। जब घूरने वाला ही ना हो तो सजने-सँवरने का अर्थ क्या है ? किसके लिए? अतः घूरना हमारी कोई समस्या नहीं है। बल्कि राष्ट्रीय हॉबी है। घूरने से प्यार बढ़ता है। ना घूरने से मन में कई तरह के शक़ पैदा होने शुरु हो जाते हैं ? ये मेरी तरफ क्यूँ नहीं देख रहा है ? हो ना हो कोई और कलमुँही तो नहीं आ गई इसकी ज़िंदगी में ?

हम भारतीय तो घूरने के लिए कितनी दूर-दूर तक का सफर करते हैं कभी गोआ के बीच कभी पटाया बीच। ये आँखें ईश्वर ने घूरने के लिए ही दी हैं। ये फाइलों में कागज काले करने और बेफिज़ूल के टार्गेट के पीछे दीदे फोड़ने को नहीं दी हैं। मनुष्य आदिकाल से घूरता रहा है, कहते हैं जब जंगली जानवर सामने आ जाये तो आप उसकी आँखों में आँखें डाल कर घूरें। वह खुदबखुद चला जाएगा। मनोज कुमार जी से बड़ा कौन भारतीय होगा। उन्होंने तो अपना नाम तक भारत रख लिया। वे अपनी फिल्म में संदेश देते हैं:

तेरी दो टकियां दी नौकरी..

इस नौकरी के पीछे आप हमें हमारे नैसर्गिक घूरने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकते। मेरी सरकार से अपील है घूरने के अधिकार को मौलिक अधिकार में शामिल किया जाये। ताकि इस घूरने को लेकर कोई कितना भी बड़ा कॉर्पोरेट हेड हो, लूज़ टाॅक ना कर सके।

हमारे जीवन में और है क्या ? अब अगर हम घूरें भी नहीं तो क्या अपनी आँखें फोड़ लें? हम तो घूरेंगे। यह कोई ग़ैर कानूनी काम नहीं है। मैं पूछता हूँ भगवान ने आंखे दी किस वास्ते हैं ? आप नहीं घूरना चाहते मत घूरो कोई आपसे घूरने को कह भी नहीं रहा है। असकी बात तो ये है कि अब आपकी उम्र सिवाय घूरने के और किसी काम की रह भी नहीं गई है। अतः आपको अन्य लोग जो घूरने से आगे बढ़ जाते हैं उन्हें लेकर आपके मन में ईर्ष्या का भाव है, आप तो असल में अब बस घूर ही सकते है। चचा ग़ालिब ने एक जगह लिखा है:

गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मिरे आगे

मृत्यु के वक़्त भी कहते हैं आँखें सबसे लास्ट में घूरना बंद करती हैं:

कागा सब तन खाइयो ये दो नैना मत खाइयो जिनमें पिया मिलन की आस

या फिर

मरने के बाद भी आँखें खुली रही उन्हें आदत थी इंतज़ार की

शायरों ने इस देखने, घूरने, निहारने पर दीवान के दीवान लिख रखे हैं। कभी इस ऑफिस के जंजाल से फुरसत निकाल कर उन्हें पढ़िये। आपको घूरने के फवायद समझ आ जाने हैं। आप कितने ग़ैर रोमांटिक इंसान होंगे समझ आ रहा है।

इन फाइलों और टारगेट्स ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया

आप घूरें और खूब घूरें इससे डेफ़िनिटली प्यार बढ़ता है। आप आज से ही इस पर अमल करना शुरू करें और अपने घर में ही इस अमृत काल में अमृत चख कर देखें।

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