कविता श्रीवास्तव
देश में हर तरफ महाकुंभ को लेकर उत्साह है। देश-विदेश से पधारे तपस्वी साधु-संतों का प्रयागराज में जमघट लगा है। भारत की संत परंपरा का मेले जैसा यह नजारा हमेशा ही कौतूहल का केंद्र रहा है। संतों की विचित्र दुनिया की झलक है। साधुओं की धूनी है, उनकी विशिष्ट पोशाक है। आकर्षक वस्त्र हैं। अस्त्र-शस्त्र हैं। कुछ निर्वस्त्र हैं। महाकुंभ में शैव, वैष्णव, निर्वाणी आदि के विभिन्न अखाड़ों के साथ ही कभी न दिखनेवाले योगी, हठी, महात्यागी, बैरागी, अघोरी, नागा हर तरह के साधु हैं। सोमवार को पहले दिन पौष पूर्णिमा पर डेढ़ करोड़ लोगों के प्रथम स्नान के बाद मंगलवार को मकर संक्रांति पर लाखों साधु-संतों सहित लगभग साढ़े तीन करोड़ लोगों ने गंगा, यमुना, सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर अमृत स्नान किया। बुधवार को भी भक्तों का सैलाब संगम तट पर उमड़ता रहा। इस तरह मात्र तीन दिनों में लगभग साढ़े पांच करोड़ लोग इस आध्यात्मिक मेले में बगैर किसी विघ्न पूरे जोश व उमंग के साथ सम्मिलित हो चुके हैं। अगले ४१ दिनों में यह संख्या ४५ करोड़ तक पहुंचेगी यही अंदाजा है। दुनियाभर में सनातन का डंका बजा रहा यह महापर्व हिंदू धर्मानुयायियों की अपार आस्था, भावपूर्ण श्रद्धा और धार्मिक परंपरा की गहरी जड़ों और अनुशासित एकता का दर्शन भी करा रहा है। यह महाकुंभ अभी आरंभ ही हुआ है। जैसे-जैसे इसकी रंगत बढ़ेगी, वैसे-वैसे इसकी चमक-दमक भी बढ़ेगी। हो भी क्यों नहीं, इस बार का महाकुंभ १४४ वर्षों के पश्चात सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का अमृत संयोग जो लेकर आया है। पुराणों के मुताबिक चाक्षुष मन्वंतर में हुए समुद्र मंथन के समय यह संयोग आया था। इस समय वैवस्वत मन्वंतर चल रहा है। युग और काल बदलते गए हैं, लेकिन प्राचीन वैदिक परंपरा और वैदिक सभ्यता-संस्कृति के आरंभ से लेकर आज के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल युग तक लोगों की आस्था में कोई फर्क नहीं आया है। हर तरफ अनंत आस्था है और भारत की प्राचीन संत परंपरा का उत्कर्ष निरंतर कायम है। संत अखाड़ों में संतों की भरमार है। हर तरफ विरले संतों के साक्षात् दर्शन हो रहे हैं। संगम तट पर साधुओं, धर्माचार्यों और कथाकारों के शिविरों की विशाल नगरी सी बसी है। उसमें प्रखर संतों व नागा साधुओं के दर्शन, कथाकारों के दिव्य प्रवचन, सत्संग, आध्यात्मिक सम्मेलन, प्रतिष्ठित गायकों के भजन व अनेक उपक्रमों का सिलसिला भारतीय सनातन संस्कृति की विलासता व विराटता का दर्शन कराती है। संतों के शिविरों में सबके लिए चाय, जलपान, भंडारे, प्रसाद आदि की भरपूर व्यवस्थाएं श्रद्धालुओं को सनातनी परिवार के अपनेपन का अहसास कराती दिखती हैं। संतों के शिविरों से सबको प्रेम-वात्सल्य, आत्मज्ञान व आश्रय प्रदान होता देखना और महसूस करना भी अद्भुत अनुभव है। वहां नि:स्वार्थ भाव से हर आगंतुक की हो रही आग्रहपूर्वक सेवा हमें भी अपनी ओर से भी कुछ कर पाने का सामर्थ्य जुटाने की प्रेरणा ही देती है।