वायु प्रदूषण को लेकर बैठक में एमपीसीबी की भूमिका पर उठे सवाल
सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई में वायु प्रदूषण पर हुई बैठक में नागरिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने प्रदूषण को रोकने के लिए तत्काल और प्रभावी प्रयासों की आवश्यकता जताई। चर्चा के दौरान एमपीसीबी की सीमित क्षमता पर सवाल उठे। एक अधिकारी ने बताया कि प्रदूषण से निपटने के लिए बोर्ड में केवल ७-८ कर्मचारी हैं, जबकि कम से कम ३० और कर्मचारियों की आवश्यकता है। सीएटी के संस्थापक ने यह भी बताया कि मुंबई हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद एमपीसीबी के १,१०० से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है, खासकर तब जब प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है।
स्वच्छ र्इंधन के महत्व पर भी जोर दिया गया, क्योंकि पीएम २.५ जैसे प्रदूषक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। आइआइटी के विशेषज्ञ ने कहा कि मुंबई में ५० फीसदी पीएम २.५ प्रदूषण शहर के बाहर के ट्रांसपोर्ट से आता है। जेजे अस्पताल की डॉ. प्रीति के अनुसार, यह प्रदूषण श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियों का कारण बनता है और गरीबों पर विशेष रूप से अधिक असर डालता है, जो गंदे र्इंधन का इस्तेमाल करते हैं।
तत्काल कदम उठाने होंगे
बैठक में नागरिकों को प्रदूषण के खिलाफ अपनी आवाज उठाने और स्थानीय स्तर पर बदलाव लाने के लिए प्रेरित किया गया। यह महत्वपूर्ण है कि नागरिक और सरकार मिलकर इस मुद्दे पर काम करें। एमपीसीबी को भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए तत्काल कदम उठाने होंगे, ताकि प्रदूषण से मुंबईकरों की सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को कम किया जा सके। साथ ही सभी संबंधित विभागों को आपसी तालमेल बनाते हुए काम करने की आवश्यकता है। प्रदूषण नियंत्रण के लिए मजबूत नीतियों, जागरूकता अभियान और सख्त नियमों को लागू किया जाना जरूरी है, ताकि आने वाले समय में शहर में जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सके।