महाराष्ट्र सरकार का एक और रुका हुआ काम पूरा हो गया है। विभाग आवंटन के लगभग एक महीने के बाद आखिरकार राज्य के ३७ जिलों के पालक मंत्री पदों की सूची घोषित कर दी गई। दरअसल, प्रशासनिक व्यवस्था में पालक मंत्री जैसे किसी पद का कोई उल्लेख या स्थान नहीं है। यह महज एक राजनीतिक सुविधा है, लेकिन हुक्मरानों को यह सुविधा बनाने के लिए एक महीने बाद का मुहूर्त मिला। अब पालक मंत्री पद की लॉटरी जीतने वालों ने राहत की सांस ली है। लेकिन जिन्हें नहीं मिला, उनकी नाराजगी के तीर कमान से तुरंत निकलने लगे हैं। महिला एवं बाल कल्याण मंत्री अदिति तटकरे को रायगढ़ जिले का प्रभार वापस मिलने से शिंदे गुट के बागवानी मंत्री नाराज हैं। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराजगी जाहिर की है। इस नियुक्ति के खिलाफ महाड में उनके समर्थकों ने मुंबई-गोवा हाईवे पर रास्ता रोको का प्रदर्शन किया। नासिक के पालक मंत्री पद के लिए आस लगाए बैठे शिंदे गुट के मंत्री के हाथ भी कुछ नहीं लगा। जलगांव के पालक मंत्री पद दोबारा हासिल करने वाले इसी गुट के जल आपूर्ति मंत्री इन दोनों की मदद के लिए आगे आए हैं। नि:संदेह दिलासा देने वाले भी जानते हैं कि अब इसका कोई उपयोग नहीं है और जिन लोगों को ‘ठेंगा’ मिला है, वे भी जानते हैं कि दिलासा देने वाले पेट भरकर डकार ले रहे हैं और उनकी
आस की भूख से सहानुभूति
जता रहे हैं। मौजूदा सरकार ने फिर से कुछ जिलों में सह-पालक मंत्री के पद का झमेला फंसाने का नया प्रयोग किया है। मुंबई उपनगर और कोल्हापुर जिले में पालक मंत्री और सह-पालक मंत्री नियुक्त किए गए हैं। मुख्यमंत्री स्वयं गढ़चिरौली के संरक्षक मंत्री हैं वहां एक ‘सह-पालक मंत्री’ भी होंगे। यह ‘सह’ का झमेला क्यों खड़ा हुआ, इससे क्या हासिल होगा, यह किसी की सुविधा के लिए है या किसी की असुविधा के लिए तैयार की गई है, यह तो मुख्यमंत्री ही जानते हैं। राज्य में दो ‘उपमुख्यमंत्रियों’ के अलावा अब तीन जिलों में ‘सह’ पालक मंत्री होंगे। चंद्रकांत दादा, पंकजा मुंडे, हसन मुश्रीफ को वहां का पालक मंत्री पद मिलने की खुशी से ज्यादा ‘दिए गए’ जिले के दुख को पचाना ज्यादा मुश्किल होगा। इसके अलावा, उन्हें अलग से इस डर से भी जूझना होगा कि उनके जिले के नए पालक मंत्री वहां कोई गड़बड़ी तो नहीं करेंगे। संतोष देशमुख हत्याकांड के कारण भारी आलोचना झेल रहे धनंजय मुंडे को भले ही पालक मंत्री का पद नहीं दिया गया, लेकिन इस पैâसले को सत्ताधारियों ने मन से नहीं लिया है। यह सच है कि भारी जनमत और राजनीतिक दबाव के कारण धनंजय मुंडे का पत्ता काटना पड़ा। अब उनके जिले के पालक मंत्री उपमुख्यमंत्री अजीत पवार होंगे। वे पुणे के साथ-साथ बीड की जिम्मेदारी भी संभालेंगे, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि वहां
‘पर्दे के पीछे’ पालक मंत्री
धनंजय मुंडे हों। जब मुंडे पालक मंत्री थे, तब वह नामधारी थे और यह खुले तौर पर कहा जाता है कि उस पद के सूत्र वाल्मीक कराड संचालित करता था, जो संतोष देशमुख हत्या मामले में गिरफ्तार है। इस बात की क्या गारंटी है कि बीड के लिए मुख्यमंत्री ने जो बीच का रास्ता अपनाया है, वह वैसा आंखों में धूल झोंकने जैसा नहीं होगा? अगर परदे पर अजीतदादा और परदे के पीछे धनुदादा ही होंगे तो जनता इस पाप का प्रायश्चित शासकों से करवाएगी। २३ नवंबर, २०२४ को सत्ता में आई सरकार और जिलों को सरकार के इन पालक मंत्री मिलने के लिए १८ जनवरी, २०२५ का दिन तय हुआ। उसमें भी ‘सह’ नियुक्त करके कुछ पालक मंत्रियों की ‘टांग’ तोड़ दी गई हैं। कुछ लोगों के हिस्से में ‘नापसंद’ जिलों के पालक मंत्री का पद दिए जाने का दुख आया है, वहीं जिन लोगों को इस पद ने ‘ठेंगा’ दिखाया है, उनके पास उठा-पठक के अलावा कोई विकल्प नहीं है। कुल मिलाकर मौजूदा महाराष्ट्र सरकार का ‘रखडपट्टी’ और ‘खरडपट्टी’ कामकाज पिछले पन्ने से आगे ठीक-ठाक जारी है। हुक्मरान महाराष्ट्र को गतिशील बनाने आदि की बात कर रहे हैं, लेकिन मंत्रिमंडल शपथ विधि और विभागों के बंटवारों व पालक मंत्री पद की नियुक्ति में एक महीना लग गया। केवल यही कहा जा सकता है कि ‘मंदगति’ सरकार का एक और रुका हुआ आवंटन खत्म हो गया है। इसलिए न तो जिलों को और न ही राज्य को गति मिलेगी!