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धर्म का दुरुपयोग करके सत्ता हासिल करना है बड़ा अधर्म… मर भी गया तो भी हिंदुत्व नहीं छोड़ूंगा!.. उद्धव ठाकरे का भाजपा पर वार

सामना संवाददाता / मुंबई

राजनीतिक स्थल पर राजनीति करें, लेकिन राजनीति करते समय धर्म का दुरुपयोग करके सत्ता हासिल करना सबसे बड़ा अधर्म है। इस तरह का तंज शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे ने भाजपा पर कसा है। उन्होंने सवाल किया कि शिवसेना के हिंदुत्व छोड़ने का दुष्प्रचार करनेवालों हिंदूहृदयसम्राट शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे का पुत्र और प्रबोधनकार ठाकरे का पौत्र क्या हिंदुत्व छोड़ सकता है? उन्होंने कहा कि मैं हिंदू हूं, हिंदू के तौर पर जन्म लिया है और हिंदू के रूप में ही मरूंगा। उद्धव ठाकरे ने जोर देकर कहा कि मर भी गया फिर भी हिंदुत्व नहीं छोड़ूंगा।
अखिल भांडुप वारकरी संप्रदाय मंडल के रजत महोत्सव वर्ष के निमित्त आयोजित अखंड हरिनाम सप्ताह में उद्धव ठाकरे शनिवार को उपस्थित थे। पांडुरंग का दर्शन करने के बाद सामूहिक आरती में भी वे शामिल हुए। उसके बाद उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि नए साल की शुरूआत होने के बाद आज मैंने पहली बार संतजनों और वारकरी भाइयों के आशीर्वाद से माइक हाथ में लिया है। उद्धव ठाकरे ने कहा कि मेरे नए साल की शुरुआत आज से पांडुरंग के आशीर्वाद से शुरू हो गई है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के साथ जाकर शिवसेना हिंदुत्व नहीं छोड़ी है। इन शब्दों में उन्होंने एक बार फिर से हिंदुत्व को छोड़ने की दुहाई देनेवालों की खबर ली।
धर्म की नाड़ी किसके हाथ में है, यही नहीं चल रहा पता

उद्धव ठाकरे ने कहा कि हालांकि अब हिंदू धर्म किस दिशा में चल रहा है, कौन नेता है, धर्म की नाड़ी किसके हाथ में है, यही पता नहीं चल रहा है। पहले घरों में घुसकर वार करनेवाले भी कुछ लोग हैं, जिन्हें मैं वारकरी नहीं कहता हूं। वे अपराधी हैं, गुनहगार हैं। उद्धव ठाकरे ने उपस्थित लोगों के सामने सवाल किया कि आखिरकार इस तरह की संस्कृति कहां से आई?
अखिल भांडुप वारकरी संप्रदाय मंडल के रजत महोत्सव वर्ष के निमित्त आयोजित अखंड हरिनाम सप्ताह में उद्धव ठाकरे ने कहा कि मुझे यहां राजनीति नहीं करनी है, लेकिन जिस तरीके से राज्य का कामकाज चलाया जा रहा है, वह बहुत ही गलत है। उसे देखकर बहुत बुरा लगता है। उन्होंने मौदूजा राजनीति पर खेद जताते हुए कहा कि एक-दूसरे के सम्मान की परंपरा, माता का सम्मान करना, आदर करना ये सभी परंपराएं अब कहीं पीछे तो नहीं जा रही हैं। इंसान के तौर पर वैâसे जीना है यह संस्कार साधू-संतों ने दिया। भूखों को भोजन, नंगों को कपड़ा, प्यासों को पानी देना ही इंसानियत है। लेकिन सत्ता के अधर्म में इसे राजनेता भूलते जा रहे हैं। सत्ता हासिल करने के लिए कुछ भी करने लगे हैं।

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