तेरे आने का सुन संदेश
मेरा हृदय हुआ व्याकुल
आंखो से बह चली इक आंसुओ की धार।
पल भर में हो गई उन्मादी,
लगी पवन मुझे सहलाती।
घर आंगन बुहारने मैं
मेंने अपनी सवेर लगा दी
द्वार पर बांधा बंदनवार
रंगोली भी बना दी।
कर दिया छिड़काव जल का,
द्वार की मिट्टी बैठा दी।
एसा क्या पकाऊं , तुम्हें
कुछ भूले स्वाद चखा दूं।
ओड़ लूं वह चुनरी जो तूने
मेले से मुझे दिलाई।
केश संवारूं चोटी गूंथूं
इक फूल वेणी भी टांक ली ,
सज संवर ,मैं चिरैया सी
घर बाहर उड़ रही,
हर आहट पर दिल की
धड़कन बढ़ती जाए।
भोर से सांझ ढल गई
गोधूलि बेला में गैया भी घर आ गई।
घर मुंडेरों पर दीपक जल उठे,
मैं भी चौराहे पर दीपक रख आई।
छज्जे पर चांद चढ़ आया
रजनीगंधा भी महक गया।
रात के पंछी कोटरों से निकल आए,
पग ध्वनि तेरी न पड़ी सुनाई।
असहय हो रही प्रतीक्षा की घड़ी,
आ लौट आ मेरे साजन
मैं देहरी पर हूं खड़ी।
बेला विरदी।