सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य में बाघों की संख्या ५०० से अधिक हो गई है, लेकिन इस बीच चौंकाने वाली यह जानकारी सामने आई है कि पिछले १८ दिनों में विभिन्न कारणों से आठ बाघों की मौत हुई है। दिलचस्प बात यह है कि राज्य में बाघों की मौत की संख्या वर्ष २०२३ की तुलना में वर्ष २०२४ में कम हो गई थी। हालांकि, नए साल की शुरुआत में ही बाघों की मौत के मामले सामने आने लगे हैं। इस बीच वन विभाग सतर्क हो गया है। साथ ही इंसानों और जंगली जानवरों में जारी संघर्ष को कम करने के लिए जद्दोजहद शुरू कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि राज्य में बाघों और तेंदुओं की संख्या बढ़ने के साथ ही मानव-वन्यजीव संघर्ष भी बढ़ रहा है। राज्य सरकार इस मामले में गंभीर है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इस विषय को अपनी १०० दिवसीय योजना में शामिल किया है इसलिए वन विभाग भी सतर्क हो गया है। राज्य सरकार ने मानव वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। इसके लिए बाघों के पुनर्वास और संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है। महत्वपूर्ण बात यह है कि अधिकांश मौतें अभयारण्यों और बाघ प्रकल्पों के बाहर हुई हैं। यवतमाल मामले में बाघ के दांत और पंजे गायब हैं। भंडारा मामले में एक बाघिन के टुकड़े पाए गए थे। आठ मौतों में से तीन बच्चे सिर्फ पांच से छह महीने के थे।