बदलापुर यौन उत्पीड़न मामला पूरे देश में चर्चित रहा था। संघ परिवार के लोगों द्वारा संचालित एक स्कूल में एक छोटी लड़की के साथ दुराचार किया गया। संस्था चालकों ने मामले को दबाने की कोशिश की। संस्था के संस्थापक को सत्ताधारी दल से संबंधित होने के चलते बचाने का प्रयास किया गया। दूसरी बात यह कि पुलिस पीड़ित लड़की की मां की शिकायत लेने को तैयार नहीं थी और वह माता दर-दर भटकती रही। जब बदलापुर के लोग सड़कों पर उतरे और दंगा भड़का तो मामला दर्ज किया गया और संस्था के अटेंडेंट अक्षय शिंदे को गिरफ्तार कर लिया गया। लोगों को शक था कि अक्षय शिंदे के साथ दूसरे आरोपी भी थे और वे संगठन से जुड़े ‘बड़े’ लोग थे। उनके साथ क्या हुआ यह फडणवीस जानते हैं। अक्षय शिंदे का मामला फास्ट ट्रैक पर चलाकर उसे कड़ी सजा दी जा सकती थी, लेकिन विधानसभा चुनाव सिर पर थे और शिंदे-फडणवीस सरकार ‘नाटक’ कर सनसनी पैदा करना चाहती थी। वोटों की गणित जमानी थी। इसलिए यह शोर मचाया गया कि २३ सितंबर २०२४ को मुंब्रा बाईपास पर एक पुलिस वैन में हुई कथित मुठभेड़ में अक्षय की मौत हो गई थी, जब उसे तलोजा जेल से अदालत ले जाया जा रहा था। इस वक्त इस एनकाउंटर को लेकर संदेह जताया गया था, लेकिन चूंकि मामला यौन शोषण का था, इसलिए सभी की जुबान मौन थी। अक्षय के हाथ में हथकड़ियां लगी थीं, चार मजबूत पुलिस जवान वैन में थे, ऐसे में क्या बेड़ियों से बंधे हाथों वाला एक दुबला-पतला आरोपी पुलिस रिवॉल्वर खींचकर भागने की कोशिश करेगा? लेकिन यह फर्जी कहानी रची गई। विपक्ष के हंगामे के बाद मामले की न्यायिक जांच कराई गई। अब जांच रिपोर्ट हाई कोर्ट को सौंप दी गई है और अक्षय शिंदे का एनकाउंटर फर्जी होने व पांच पुलिसकर्मियों के खिलाफ
केस दर्ज करने का
निर्देश मुंबई हाई कोर्ट ने दिया है। आरोपी की हत्या के लिए पांच पुलिसकर्मियों को जिम्मेदार ठहराया गया। इन सभी पुलिसकर्मियों को अब नौकरी से बर्खास्त किया जाएगा और उनके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया जाएगा। यानी वो पुलिसकर्मी और उनके परिवार सड़कों पर आ गए। अक्षय शिंदे की हत्या होते ही भाजपा, शिंदे गुट आदि ने उसका ‘इवेंट’ बना दिया। क्योंकि विधानसभा चुनाव सिर पर थे और वे वोट के लिए माहौल बनाना चाहते थे। अक्षय शिंदे की हत्या के बाद, एकनाथ शिंदे और फडणवीस लगभग एक-दूसरे से गले मिले, पेड़े बांटे और पटाखे फूटे। दोनों के बीच अक्षय शिंदे की हत्या का श्रेय लेने की होड़ शुरू हो गई। ‘देवाभाऊ चा न्याय’ के पोस्टर हर जगह देखे गए और हाथ में बंदूक लिए हुए फडणवीस की तस्वीर के साथ उन्हें ‘सिंघम’ घोषित किया गया। लेकिन अब इस एनकाउंटर को जांच कमेटी ने फर्जी करार दिया है और पांच पुलिसकर्मियों को दोषी करार दिया है, इसका क्या किया जाए? वास्तव में, ठाणे के पुलिस आयुक्त, ठाणे के पालक मंत्री और गृह मंत्री को भी अदालत द्वारा जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। यह हत्या उनकी सहमति के बिना नहीं हो सकती। अक्षय शिंदे का मामला फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाकर उसे कड़ी सजा देना जरूरी था। कोलकाता में महिला डॉक्टर से रेप और हत्या के मामले में आरोपी संजय रॉय को वहां की अदालत ने सोमवार को उम्रवैâद की सजा सुनाई है। लेकिन बंगाल सरकार ने उसके लिए फांसी की अपील की है। ऐसे मामले में, जनता की भावनाएं प्रबल हो जाती हैं और झटपट न्याय की मांग करती हैं। यह झटपट न्याय कानून और संविधान के दायरे में फिट नहीं बैठता। इसलिए राजनीतिक लाभ के लिए अक्षय शिंदे जैसे हत्या के मामले होते हैं। अक्षय शिंदे की हत्या के बाद बदलापुर-अंबरनाथ इलाके में लड़कियों के यौन उत्पीड़न और हत्या के सात-आठ गंभीर मामले हुए। कल्याण में १३ साल की नाबालिग लड़की से रेप कर हत्या करने वाले नराधम विशाल गवली का मामला धक्कादायक है। लोगों ने अक्षय शिंदे की तरह
विशाल गवली के एनकाउंटर
की भी मांग की। इस मामले में नराधम गवली ने लड़की की हत्या कर दी, लेकिन चुनाव हो गए थे। पुलिस और उनके राजनीतिक आकाओं को बेड़ियों में जकड़े विशाल गवली के एनकाउंटर में दिलचस्पी नहीं रही। हाई कोर्ट ने अक्षय शिंदे मामले में राज्य के गृह मंत्री और पुलिस विभाग के झूठ का पर्दाफाश किया। अब क्या भाजपा या शिंदे गुट के लोग हाई कोर्ट को आरोपियों के पिंजरे में खड़ा करेंगे? या इसका भी ठीकरा पंडित नेहरू पर फोड़कर आजाद हो जाएंगे? अक्षय शिंदे का फर्जी एनकाउंटर करने वाला पुलिस अधिकारी संजय शिंदे भी खाकी वर्दी वाला अपराधी है। पुलिस विभाग में उनका करियर आपराधिक प्रकृति का है। खुलासा हुआ कि उसके दाऊद इब्राहिम गिरोह से संबंध थे। संजय शिंदे को एक ‘दयावान’ के रूप में जाना जाता है, जो गिरफ्तार अपराधियों को आर्थिक लेन-देन के बदले में मदद करता है और अब यह खुलासा हुआ है कि सत्ता के ‘शिंदे’ ने बेड़ियों में जकड़े ‘शिंदे’ को मारने की सुपारी इस ‘शिंदे’ को दी थी। अगर यह हत्याकांड पच जाता तो संजय शिंदे और उसके गैंग को पुलिस वीरता पदक देने की सिफारिश की गई होती, लेकिन कोर्ट ने खेल खत्म कर दिया है। इससे पहले लखनभैया पाठक मामले में हाई कोर्ट ने ‘झूठे’ एनकाउंटर के लिए बीस पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसमें एकनाथ शिंदे के गुट का पुलिस अधिकारी प्रदीप शर्मा भी शामिल है। कहा जाता है कि अक्षय शिंदे की फेक एनकाउंटर की पटकथा और निर्देशन पर्दे के पीछे प्रदीप शर्मा ने ही किया था। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस वास्तव में राज्य में क्या पाल रहे हैं? किसके लिए पाल रहे हैं? अक्षय शिंदे की हत्या से कई सवाल खड़े हुए हैं। अक्षय शिंदे की तरह सरपंच संतोष देशमुख के हत्यारों का एनकाउंटर क्यों नहीं हुआ? फडणवीस, ये सवाल लोगों के मन में हमेशा कुलबुलाता रहेगा। देवाभाऊ गए न्याय करने, लेकिन बंदूक से निकली उल्टी गोली!