सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र में दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल विकार गुइलेन बैरे सिंड्रोम यानी जीबीएस कहर बरपा रहा है। आलम यह है कि इस रोग के मरीजों की संख्या दो दिनों में दोगुनी हो गई है। राज्य में अब तक कुल ६७ लोगों में इस रोग का पता चला है। इनमें से १३ रोगियों को वेंटिलेटर पर रखा गया है। उल्लेखनीय है कि पुणे के नांदेड़ शहर, सिंहगढ़ रोड और धायरी इलाकों में गुइलेन बैरे सिंड्रोम का खतरा बढ़ गया है। पुणे में गुइलेन बैरे सिंड्रोम के रोगियों की संख्या तीन दिनों में २२ से बढ़कर ६७ हो गई है। इनमें से १३ मरीज वेंटिलेटर पर हैं। बताया गया है कि पुणे के ग्रामीण इलाकों से ३९, पुणे मनपा की सीमा में १३, पिंपरी चिंचवड मनपा में १२ मिले हैं, जबकि तीन मरीज दूसरे जिलों से हैं। मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए पुणे मनपा एलर्ट मोड पर आ गई है। बताया गया है कि यह बीमारी दूषित पानी पीने के कारण हुई है। क्षेत्र से पानी के नमूने परीक्षण के लिए भेजे गए हैं। वैसे तो यह बीमारी खतरनाक नहीं है, लेकिन इससे मौत का जोखिम पांच फीसदी है। इसके अलावा वायरल और बैक्टीरियल संक्रमण होने पर इस बीमारी के होने का जोखिम भी अधिक होता है। ऐसे में अधिकारियों को प्रभावित व्यक्तियों का संपूर्ण चिकित्सा इतिहास लेने का निर्देश दिया गया है।
स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक प्रभावित ११ बच्चे शून्य से नौ वर्ष, जबकि १२ बच्चे १० से १९ वर्ष के हैं। इसके साथ ही सात मरीज २० से २९ आयु वर्ग के हैं, जबकि आठ मरीज ३० से ३९ वर्ष के हैं। इसी तरह आठ मरीज ४० से ४९ आयु वर्ग, जबकि पांच मरीज ५० से ५९ वर्ष की आयु के हैं। पंद्रह मरीज ६० से ६९ वर्ष की आयु के हैं। साथ ही एक व्यक्ति ७० से ८० वर्ष की आयु का है। अब तक मिले कुल संक्रमितों में ३८ पुरुष और २१ महिलाएं हैं। उन्हें विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कराया गया है।
चिकित्सकों के मुताबिक जीबीएस एक स्वप्रतिरक्षी रोग है, जिसके कारण शरीर एंटीबॉडी उत्पन्न करता है जो अपनी ही नसों पर हमला करता है। यह या तो जठरांत्र संबंधी या इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी का परिणाम है। लेकिन इस बीमारी से डरने की कोई जरूरत नहीं है।