गुलियन बैरी सिंड्रोम ने राज्य में कहर बरपा रखा है। यह एक गंभीर बीमारी है जो राज्य में हवा की तरह पैâल गई है। महाराष्ट्र में स्वास्थ्य आपातकाल के बीच मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए निकल गए हैं। कोरोना की तरह ये बीमारी भी चीन से पैâली है और उस हमले का असर भारत पर दिखना शुरू हो गया है। जब राज्य पर यह स्वास्थ्य संकट आया है तो संकेत ऐसे मिल रहे हैं कि आपसी नफरत और अपमान के चलते सरकार कोमा में चली गई है। अकेले पुणे में जीबीएस बीमारी के सवा सौ मरीज हैं। पांच किलोमीटर के दायरे में करीब १०० मरीज हैं। उस बीमारी से पीड़ित १४ मरीज वेंटिलेटर पर हैं। जीबीएस का पहला हमला पुणे में हुआ है। इसलिए पुणे के लोगों का डरना स्वाभाविक है। कोयता गैंग के आतंक से पुणे पहले से ही दहशत में है और उस पर जीबीएस बीमारी का कहर। पुणे के पालक मंत्री अजीत पवार ने एक बैठक की और कहा, ‘यह बीमारी संक्रामक नहीं है। नागरिकों को सावधान रहना चाहिए।’ अजीत पवार कोई मेडिकल डॉक्टर नहीं हैं वहीं राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अबिटकर भी इस मामले में और भी ज्ञानी हैं। रोग संक्रामक नहीं है। फिर यह हवा की तरह एक ही परिधि में वैâसे पैâल गया? यह चीन से भारत तक वैâसे पैâला? इस बारे में हर कोई मंत्रिमंडल में अपना ज्ञान बांट रहा है, लेकिन इस बीमारी के बारे में सच्चाई यही है कि यह एक दुर्लभ बीमारी है। यह वायरस या बैक्टेरिया संक्रमण के कारण होता है। इस रोग के कारण थकान होती है। हाथ-पैर में झुनझुनी होती है। सांस लेने में दिक्कत होती है। घबराहट होती है। ये लक्षण गंभीर हैं। जीबीएस एक अजीब बीमारी है जिसमें रोग प्रतिरोधक शक्ति अपने ही शरीर पर हमला करती है। यह शक्ति शरीर के तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण करती है।
नसों को प्रभावित
करती है। यह मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। ये लक्षण गंभीर होते हैं और मरीज को गंभीर कीमत चुकानी पड़ती है। महाराष्ट्र में यह गंभीर बीमारी पुणे के अलावा सोलापुर, कोल्हापुर और नागपुर तक पैâल गई है। सोलापुर में एक मरीज की मौत हो गई है, वहीं मरीजों की संख्या ११० के पार पहुंच गई है। हालात इतने गंभीर होने के बाद भी महाराष्ट्र सरकार का बर्ताव ऐसे है जैसे वह खुद इस बीमारी से पीड़ित हो। सरकार के हाथ-पांव और दिमाग में भी चींटियां रेंग रही हैं और ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि सरकार के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया है। यह सरकार जीबीएस बीमारी से वैâसे लड़ेगी, गुइलेन बैरी सिंड्रोम को लेकर राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग ने क्या सख्त कदम उठाए हैं, ये समझने का कोई तरीका नहीं है। या फिर भाजपा की नीति के मुताबिक ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने से गुलियन सिंड्रोम भाग जाएगा? इस बात पर स्पष्ट मार्गदर्शन होना जरूरी है कि क्या अस्पताल के बाहर ‘गो कोरोना गो’ जैसे ‘गो गुलियन गो’ नारे लगाए जाने चाहिए या गुलियन के खिलाफ लड़ाई के लिए घंटियां, थाली और चम्मच बजाए जाने चाहिए। लोगों के मन में गुलियन का डर है और सरकार बेफिक्र है। यह बीमारी क्या है और वैâसी है, इसका निरीक्षण करने केंद्र की एक टीम महाराष्ट्र आई और बिना निरीक्षण किए चली गई। यदि यह सच है, तो यह गुलियन रोग से भी अधिक गंभीर है। इस बीमारी से ‘लकवा’ मारे जाने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बारे में विशेष जानकारी दी है। बेशक, विश्व स्वास्थ्य संगठन भी व्यापारिक वृत्ति वाला खेल है। बीमारी को नियंत्रित करने की बजाय, यह उन्हीं नीतियों को लागू करता है जिससे दवा कंपनियों को मदद मिले, वह इस नजरिए से बीमारी के बारे में डर पैदा करता है। फिर भी
विश्व स्वास्थ्य संगठन
इस बीमारी के बारे में क्या कह रहा है, इसे गंभीरता से समझना होगा। इस बात का क्या मतलब है कि जनता इस बीमारी से सतर्क रहे? सच तो ये है कि सरकार को सचमुच सतर्क रहना चाहिए। कहते हैं, इस बात का ध्यान रखें कि पीने का पानी दूषित न हो, लेकिन इस तथ्य का क्या कि राज्य में ६० प्रतिशत लोगों को स्वच्छ और शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं है? साफ-सुथरा और ताजा खाना खाने के निर्देश हैं, लेकिन अधपेट जनता इस साफ-सुथरे या ताजे खाने का बंदोबस्त वैâसे कर पाएगी? स्वास्थ्य संगठन ने व्यक्तिगत स्वच्छता पर जोर देने की सलाह दी। ये सभी सलाह नागरिकों को देने की बजाय ये सभी सुविधाएं मुहैया कराने की जिम्मेदारी उस देश और राज्यों की सरकारों की होती है और स्वास्थ्य संगठन को यह स्पष्ट करना चाहिए कि सरकार ‘सतर्क’ रहे और नागरिकों को ये सब मुहैया कराए। प्रयागराज के कुंभ मेले में करीब २० करोड़ लोग आएंगे। यह रोजाना एक करोड़ का आंकड़ा है। वहां अंतत: भगदड़ में मौत हो गई। अगर वहां की सफाई और स्वास्थ्य व्यवस्था ‘गुलियन’ के अनुकूल है तो सरकार को भी इस संबंध में सतर्क रहना चाहिए। ‘गुलियन’ महाराष्ट्र में प्रवेश कर चुका है और मंत्री परिषद इसे लेकर सतर्क नहीं है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार के लिए मुख्यमंत्री दिल्ली में डेरा जमाए बैठे हैं। दरअसल, मुख्यमंत्री को ‘जीबीएस’ को रोकने यानी गुलियन को खत्म करने के लिए दिल्ली में अपना प्रचार दौरा रोककर महाराष्ट्र में रहना चाहिए था, लेकिन राजनीतिक कर्तव्य, चुनाव महत्वपूर्ण होने के कारण गुलियन को महाराष्ट्र में खुला छोड़ मुख्यमंत्री दिल्ली में हैं। क्या गुलियन पर ‘ईवीएम’ फेंकने से वह भाग जाएगा या शिंदे द्वारा गुलियन पर पैसों की बारिश करने से वायरस बह जाएगा? लोगों को कुछ समझ नहीं आ रहा है। लोग डरे हुए हैं। गुलियन का क्या करें? यह सवाल है।