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संपादकीय : क्या कोर्ट की शान बनी रहेगी?

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नतीजे एक गहन रहस्य बन गए हैं। यह वैâसे हो गया? ये सवाल अब मुंबई हाई कोर्ट के जेहन में आया है और कोर्ट ने चुनाव आयोग से भी यही सवाल किया है। राज्य के विधानसभा चुनाव नतीजों का सारा खेल शाम छह बजे के बाद बढ़े मतदान का है। चुनाव आयोग को निर्देश दिया गया है कि वह दो सप्ताह के भीतर सबूत पेश करे कि करीब ७६ लाख मतदान प्रतिशत वैâसे बढ़ गया इसलिए संदेह पुख्ता होता जा रहा है कि ‘दाल में जरूर कुछ काला है’। जिस तरह मुख्यमंत्री फडणवीस ‘वर्षा’ बंगले में रहने क्यों नहीं जा रहे हैं? यह एक रहस्य है, उसी तरह यह भी एक रहस्य है कि ७६ लाख वोट वैâसे बढ़ गए। ‘वर्षा’ बंगले पर किसी ने काला जादू किया है। प्रगतिशील महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने इस चर्चा के कारण ‘वर्षा’ बंगले में नहीं जाने का पैâसला किया है कि जो कोई भी वहां रहने जाएगा वह सफल नहीं होगा और उसके पीछे कठिनाई और परेशानियों का रेला आएगा। इसी तरह यह भी साफ है कि किसी ‘घोटाले और टोने’ के चलते ७६ लाख वोट बढ़ाए गए और सत्ता हासिल हो गई। हाई कोर्ट के कुछ बुनियादी सवाल हैं। मतदान के दिन शाम ६ बजे के बाद ७६ लाख वोट वैâसे बढ़ गए? क्योंकि छह बजे के बाद मतदान केंद्र पर भारी भीड़ थी और मतदान केंद्र के बाहर लंबी कतारों की कोई तस्वीर नहीं थी और छह बजे के बाद ऐसा कहीं भी माहौल नहीं था कि ७६ लाख की बढ़ी हुई संख्या का मिलान हो। अब हाई कोर्ट ने झटका दिया है कि शाम छह बजे के बाद की वोटिंग का वीडियो दिया जाए और वोटिंग स्लिप का रिकॉर्ड भी जमा किया जाए। बेशक चुनाव आयोग हाई कोर्ट के आदेश का पालन करेगा? हमें तो इस पर संदेह है। हरियाणा में भी बढ़ी संदिग्ध वोटिंग का मामला पंजाब हाई कोर्ट में गया और जब उस कोर्ट ने भी यह जानकारी मांगी तो गृह मंत्रालय ने हस्तक्षेप किया और हाई कोर्ट को यह जानकारी देने से रोक दिया इसलिए
उच्च न्यायालय का
पैसा और मेहनत पानी में चला गया। मुंबई हाई कोर्ट ने भी ऐसे ही सुझाव दिए, लेकिन क्या घोटाले के सबूत हाई कोर्ट तक पहुंचने दिए जाएंगे? सबूत और दस्तावेज नष्ट कर दिए गए हैं और हमारा चुनाव आयोग दगाबाज हो गया है। भारतीय जनता पार्टी और उसके लोगों ने सीधे तरीकों से चुनाव नहीं जीता है। महाराष्ट्र के हर बूथ पर घोटाला हुआ है। मतदाता सूची में हर बूथ पर ‘बोगस’ नाम घुसाकर और बूथ व्यवस्था पर दबाव बनाकर अंदरखाने बोगस वोटिंग कराई गई। कई मतदान केंद्रों पर तो मतदाता की उंगली पर सिर्फ स्याही लगा दी गई और कहा गया, ‘आपकी वोटिंग हो गई, जाओ।’ मतदाताओं को पैसे और शराब बांटी गई। कई बस्तियों में मतदान न करने के लिए पैसे बांटे गए। इसके अलावा ‘ईवीएम’ सेटिंग का काला जादू किए जाने का संदेह कायम है। एड. प्रकाश आंबेडकर के मुताबिक अगर वोटों की गिनती में वास्तविक वोट और काउंटर वोट मेल नहीं खाते तो निश्चित रूप से घोटाला हुआ है। कई जगहों पर वास्तविक मतदान और गिनती के मतदान में बड़ा अंतर पाया गया। इसे क्या समझा जाए? चुनाव आयोग ने इस संबंध में की गई शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया और शिकायतकर्ताओं को गोलमोल जवाब दिए। यदि चुनाव पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से नहीं हुए तो चुनाव का कोई मतलब ही नहीं है इसीलिए प्रबुद्ध नागरिकों को हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। हाई कोर्ट ने जैसे ही ७६ लाख अतिरिक्त वोटों का हिसाब मांगा, उसी वक्त विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने लोकसभा में उन्हीं ७६ लाख वोटों का सवाल उठाया। महाराष्ट्र में एक ही दिन में हिमाचल प्रदेश जितने मतदाता कहां से आ गए? यह चुनाव आयोग बताए। कहना होगा कि यह जादू-टोना ही है कि महाराष्ट्र में एक ही दिन शाम ६ बजे के बाद एक राज्य की जनसंख्या के बराबर वोटिंग बढ़ जाती है और उस
बढ़े हुए वोट पर
भाजपा जीत जाती है। शिर्डी में एक जगह सात हजार वोट बढ़े और सभी ने वहीं वोट किया जहां भाजपा को बढ़त मिली ऐसी जानकारी श्री राहुल गांधी ने लोकसभा में दी उस वक्त प्रधानमंत्री मोदी सदन में मौजूद थे। शिर्डी में विखे पाटील के कॉलेज में छात्रों द्वारा बड़े पैमाने पर फर्जी वोटिंग के सबूत के बावजूद चुनाव आयोग कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है। इन सभी तरह की बातों पर हाई कोर्ट ने गंभीरता से संज्ञान लिया, लेकिन क्या हाई कोर्ट की यह भूमिका आखिर तक कायम रहेगी? विधायक को अयोग्यता मामले में न्या. चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान शुरू में दर्शाया कि वे सत्य और न्याय के पक्ष में हैं, लेकिन बाद में उनका रुख संविधान और लोकतंत्र मारक था। वे महाराष्ट्र में संवैधानिक पेच पर कोई पैâसला दिए बिना भाग गए। उन्होंने पहले से ही अपदस्थ विधानसभा अध्यक्ष को न्याय की जिम्मेदारी सौंपकर खुद को इस प्रक्रिया से अलग कर लिया। इससे न्यायपालिका पर से लोगों का भरोसा टूटा। अब ७६ लाख बढ़े वोटरों के मामले में क्या हाई कोर्ट का रुख और भूमिका आखिर तक कायम रहेंगी? इसको लेकर लोगों में संशय है। चुनाव आयोग के पास कोई रीढ़ नहीं है, प्रशासन शासकों के सामने रेंग रहा है, ऐसे वक्त में हमारी अदालतों पर लोकतंत्र की रक्षा करने की जिम्मेदारी है। एक-एक वोट से हार-जीत तय होती है, बड़ी-बड़ी सरकारें गिर जाती हैं। यहां ७६ लाख वोटों का सवाल है। मुख्यमंत्री फडणवीस वर्षा बंगले में रहने क्यों नहीं जा रहे हैं इसी सवाल जैसा, सवाल है ७६ लाख बढ़े हुए वोटो का बाप कौन है? इन दो सवालों ने महाराष्ट्र को परेशान कर रखा है। महाराष्ट्र में ७६ लाख बढ़े वोटों का घोटाला हुआ है यह श्रद्धा है और गुवाहाटी में बलि चढ़ाए गए भैसों के सींग ‘वर्षा’ बंगले में दबे हुए हैं यह अंधश्रद्धा है, लेकिन इन सबके चलते महाराष्ट्र भ्रमित है यह सच है।

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