सामना संवाददाता / पुणे
पुणे के साथ-साथ पिंपरी-चिंचवड़ शहर का तेजी से विस्तार हो रहा है। औद्योगीकरण और सूचना प्रौद्योगिकी शहर के रूप में पुणे की पहचान निवेशकों को आकर्षित करने में मदद कर रही है। इससे शहर में रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं। इस अवसर की तलाश में विदेशों से बड़ी संख्या में प्रवासी पुणे आ रहे हैं। वैकल्पिक रूप से पुणे का और विस्तार हो रहा है। शहर में बढ़ती आबादी के कारण घरों की मांग बढ़ती जा रही है। इसके चलते पिछले कुछ सालों में हाउसिंग सेक्टर में तेजी देखने को मिली है। अब एक गंभीर मामला सामने आया है कि यह सेक्टर सरकारी लालफीताशाही की मार झेल रहा है।
यह इस बात का उदाहरण है कि जब किसी आदेश की सरकारी स्तर पर अलग-अलग व्याख्या की जाती है तो क्या होता है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की भोपाल खंडपीठ ने आदेश दिया था कि राज्यस्तरीय समितियां बड़ी आवासीय परियोजनाओं को पर्यावरण मंजूरी नहीं देंगी। यह आदेश सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों के लिए था। हालांकि, यह आदेश राज्य में लागू किया गया था। यह आदेश पिंपरी-चिंचवड़ और उसके आस-पास के क्षेत्रों में लागू हो गया, इसलिए पिंपरी-चिंचवड़ और पुणे में आवास परियोजनाओं को मंजूरी के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के पास जाना पड़ता था।
नए आवास की आपूर्ति में कमी
२०२३ में पुणे में ८३ हजार ६२५ नए घरों की आपूर्ति की गई। पिछले वर्ष इसमें २८ प्रतिशत की कमी आई, ६० हजार ५४० नए मकानों की आपूर्ति हुई। पुणे में २०२३ में ८६ हजार ६८० घर बिके। पिछले साल ६ फीसदी की गिरावट के साथ ८१ हजार ९० घर बिके थे। २०२३ में पुणे में घर की औसत कीमत ६,७५० रुपए प्रति वर्गफुट थी। एनारॉक की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल यह १४ फीसदी बढ़कर ७,७२० रुपए पर पहुंच गया। यह एक आंकड़ा है, जो पूरे हाउसिंग सेक्टर पर असर दिखाता है।
१०० से ज्यादा प्रोजेक्ट प्रभावित
पुणे पर गौर करें तो १०० से ज्यादा प्रोजेक्ट प्रभावित हुए हैं। इन परियोजनाओं की कुल लागत करीब २० से ३० हजार करोड़ रुपए है। इसमें २० हजार से लेकर डेढ़ लाख वर्गमीटर तक के बड़े हाउसिंग प्रोजेक्ट शामिल थे। डेवलपर्स पर सीधा असर पड़ा, क्योंकि ये परियोजनाएं ६ महीने से अधिक समय तक रुकी रहीं।