ये जो जिम्मेदारियों का बोझा है न?
जिसे ढोते-ढोते तुम चूक जा रही हो उम्र और शक्ति से।
ये कभी खत्म नहीँ होगा…
तुम्हें इनके साथ ही खुद को जीवन देना सीखना होगा।
पति-बच्चे सभी पलट कर नहीँ कहेंगे,
जाओ प्रिये जी लो अपनी जिंदगी।
जाओ मम्मी आज तुम भी घूम आओ अपने मित्रों के संग,
इसलिए तुम्हें जिम्मेदारी किनारे रखकर…
खुद के लिए, खुद के मन को स्वस्थ रखने के लिए
उठाना होगा कदम…
हंसना होगा जिम्मेदारी पर,
करना होगा उसे चैलेंज।
हावी नहीँ होने देना है उसे खुद पर,
निकल पडना है एक वाक पर…
ढूंढना है कोई डांस क्लास…
या कोई योगा क्लास।
जहां सीख सको खुद के लिए सकारात्मकता…
जहां कुछ समय बिताकर,
फेंक सको अपनी थकान और तमाम कुंठाएं…
जो जाने कबसे जड़ जमाकर भीतर कहीं पैठ बना लेती हैं।
सुनो स्त्रियों…निकल रहा समय…
एक बार जब चूक जाओगी देह की शक्ति से…
कोई नहीँ बोलेगा, क्यों नहीँ समय रहते खुद के लिए जीना सीखा?
कोई नहीँ याद करेगा तुम्हें तुम्हारे जाने के बाद…
किसी का जीवन नहीँ रुकेगा तुम्हारे चले जाने से…
किसी को याद आने वाली नहीँ तुम…
इसलिए उतनी ही अच्छी बनने की कोशिश करो, जितनी तुम्हारी देह अफोर्ड कर सके…
और देह को खुश करने के लिए…
उसको खूब घुमाओ, हंसाओ, पर्याप्त नींद दो…
उसे अच्छा भोजन दो…
उसका ख्याल रखो…
ताकि जब साथ छूटने का समय आए देह से…
ये देह तुम्हारा कर सके शुक्रिया सुनो, सुन लो न खुद के देह की पुकार।
-सीमा मधुरिमा
लखनऊ