– कमजोर रुपया और सुस्त
सामना संवाददाता / मुंबई
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने ५ साल बाद रेपो रेट में २५ बेसिस पॉइंट की कटौती कर इसे ६.२५ कर दिया है। यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया, जब रुपया ८७ के पार पहुंच चुका है। जीडीपी ग्रोथ धीमी हो रही है और निवेशकों का भरोसा डगमगा रहा है। सवाल उठ रहा है कि क्या यह अर्थव्यवस्था को गति देने की रणनीति है या आरबीआई की मजबूरी?
कमजोरी की बड़ी वजहें
– रुपए की गिरावट: विदेश निवेशक पैसा निकाल रहे हैं, जिससे रुपया कमजोर हो रहा है।
– जीडीपी ग्रोथ में गिरावट- २०२५-२६ के लिए विकास दर का अनुमान ६.७ फीसदी है, जो पिछले साल के मुकाबले कम है।
– कर्ज महंगा होने से सुस्ती: ऊंची ब्याज दरों ने कारोबार और बाजार को धीमा कर दिया था।
– महंगाई का खतरा: दिसंबर में खुदरा महंगाई ५.२२ फीसदी रही, लेकिन आगे जोखिम बना हुआ है।
क्या आरबीआई के पास
कोई और विकल्प था?
ब्याज दर में कटौती से लोन सस्ते होंगे, जिससे होम, ऑटो और बिजनेस लोन की ईएमआई मे ंराहत मिलेगी। इससे बैंकिंग सेक्टर को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि बैंकों को अधिक कर्ज देने का अवसर मिलेगा, जिससे बाजार में तरलता बढ़ेगी।
हालांकि, इस फैसले से कुछ जोखिम भी हैं। विशेषज्ञों की मानें तो ब्याज दर में कमी से रुपए पर दबाव बना रह सकता है, क्योंकि इससे विदेशी निवेशक अपना पैसा बाहर निकाल सकते हैं।
इसके अलावा, बाजार में अधिक नकदी आने से महंगाई के भी बढ़ने का खतरा रहेगा।
आरबीआई कमजोर अर्थव्यवस्था और सुस्त निवेश के कारण ब्याज दर घटाने को मजबूर हुआ। अब देखना होगा कि यह राहत टिकाऊ साबित होती है या सिर्फ अस्थायी मरहम ही बनकर रह जाएगी।