अरविंद केजरीवाल खुद दिल्ली विधानसभा में हार गए। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने २२ सीटें जीतीं, जबकि भाजपा ने ७० सदस्यीय विधानसभा में स्पष्ट बहुमत हासिल किया। कांग्रेस हमेशा की तरह कद्दू भी नहीं फोड़ पाई। दिल्ली में २७ साल बाद भाजपा को जीत मिली है। केजरीवाल समेत पूरी आप की कैबिनेट हार गई। अपवाद मात्र मुख्यमंत्री आतिशी और गोपाल राय हैं। केजरीवाल वहीं लौट आए हैं जहां से उन्होंने राजनीति शुरू की थी। केजरीवाल की हार और भाजपा की जीत के विश्लेषण की झड़ी लगी है, लेकिन मोदी और उनके लोगों ने दिल्ली की जीत का जश्न ऐसे मनाया मानो दुनिया जीत ली है। दिल्ली फैसले पर दो प्रतिक्रियाएं उल्लेखनीय हैं। पहला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का और दूसरा अन्ना हजारे का। रालेगण के अन्ना हजारे को महात्मा अन्ना बनाने में केजरीवाल और उनके लोगों की बड़ी भूमिका रही है। अन्ना को देश ने जाना, वो केजरीवाल द्वारा किए गए ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रीय आंदोलन’ की वजह से। हजारे को दिल्ली केजरीवाल-सिसोदिया ने दिखाई थी और बाद में केजरीवाल ने उसी दिल्ली पर राजनीतिक कब्जा कर लिया। केजरीवाल ने दिल्ली की धरती पर कम से कम दस साल तक प्रधानमंत्री मोदी से लड़ाई की और शाह-मोदी की राजनीति को मात दी। अब मोदी-शाह कई गड़बड़ियां कर जीत हासिल करने में कामयाब रहे। केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की हार की खुशी अन्ना हजारे के चेहरे पर साफ झलक रही है। अन्ना कहते हैं, ‘अरविंद केजरीवाल के विचार और चरित्र शुद्ध नहीं हैं। उनका जीवन बेदाग नहीं था। मतदाताओं को विश्वास नहीं था कि वह हमारे लिए कुछ करेंगे। मैंने उनसे बार-बार कहा, लेकिन उन्होंने नहीं सुनी। दिल्ली में
शराब ठेकों के जरिए
जो आर्थिक घोटाला हुआ, उससे उनकी बदनामी हुई।’ अन्ना हजारे के दर्द को समझा जाना चाहिए। केजरीवाल का नेतृत्व उस आग से उभरा जो अन्ना के आमरण अनशन से भड़की थी और अब उसी हजारे ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के दिन लोगों से ‘केजरीवाल को बिल्कुल भी वोट न देने’ की अपील की। अन्ना हजारे के जंतर-मंतर, रामलीला मैदान में कठोर आत्मक्लेश और अन्ना के आंदोलन के कारण तत्कालीन कांग्रेस सरकार घबरा गई। मोदी और उनके लोगों के सत्ता पाने में अन्ना के आंदोलन का रोल था, लेकिन जो मोदी आज केजरीवाल पर आरोप लगा रहे थे, वे अन्ना के आंदोलन के किस विचार को आगे ले गए? अन्ना के आंदोलन का उद्देश्य जनता को सूचना का अधिकार मिलने, भ्रष्टाचारियों को दंड मिलने और सरकार की कार्यशैली में पारदर्शिता लाने का था। क्या इनमें से एक भी मसले पर मोदी के शासनकाल में काम हो रहा है? सूचना के अधिकार को दबा दिया गया है। चुनाव और भ्रष्टाचार के बाबत यदि जनता जानकारी मांगती है तो उनकी अर्जी कचरे की टोकरी में फेंक दी जाती है। हमारा मत वास्तव में कहां गया है, यह जानने का अधिकार खत्म कर दिया गया है और अन्ना हजारे इस बारे में कुछ नहीं कह रहे हैं। भ्रष्टाचार के बारे में बात ही न करें। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि झूठ, अहंकार, अराजकता, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार का शीशमहल नष्ट हो गया है। वह बयान मजेदार है। ये सभी बुराइयां सबसे ज्यादा भाजपा की रगों में भरी हुई हैं। मोदी का अमृतकाल धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार की बैसाखियों पर टिका हुआ है और हजारे सिर्फ केजरीवाल के नाम पर टोपी पर हाथ फिरा रहे हैं। मोदी-शाह महाराष्ट्र और देशभर के सभी ‘दस नंबरी’ भ्रष्टाचारियों को एक साथ लाकर अपना राज चला रहे हैं। मोदी राज में
देश को लूटने वालों को अभय
प्राप्त है, क्या अन्ना हजारे को नहीं दिखता कि भ्रष्ट पैसे के दम पर थोक में दल परिवर्तन चल रहा है? राफेल से लेकर हिंडनबर्ग तक कई घोटाले सामने आने के बाद भी अन्ना हजारे ने उफ तक नहीं की। ऐसा लगता है मानो मोदी के राज में विचार और चरित्र की बाढ़ ही आ गई है और उस सैलाब में महाराष्ट्र में ठाकरे और दिल्ली में केजरीवाल के राज बह गए। इंसान ढोंग करे भी तो कितना? उस लिहाज से उमर अब्दुल्ला द्वारा व्यक्त किया गया गुस्सा व्यावहारिक है। दिल्ली में आप और कांग्रेस न सिर्फ एक-दूसरे के खिलाफ लड़े, बल्कि एक-दूसरे की इज्जत तार-तार कर दी। इस तरह इन दोनों ने भाजपा का काम आसान कर दिया। उमर ठीक ही कहते हैं, ‘आपस में जी भर के लड़ो और एक-दूसरे को खत्म करो।’ १४ सीटों पर ‘आप’ की हार में कांग्रेस का योगदान रहा। हरियाणा में भी यही हुआ। ‘आप’ से लड़ने के बाद आखिर कांग्रेस के हाथ क्या लगा? क्या कांग्रेस पार्टी में कोई छिपी हुई ताकतें हैं, जो हमेशा राहुल गांधी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना चाहती हैं? अगर कांग्रेस नेता यह कह रहे हैं कि आप को जिताना कांग्रेस की जिम्मेदारी नहीं है तो यह गलती है और एक तरह का अहंकार है तो क्या मोदी-शाह की तानाशाही को जिताने की जिम्मेदारी आपस में लड़ने वालों की है? दिल्ली के नतीजे का असर लोकतंत्र पर पड़ेगा। महाराष्ट्र में भी कांग्रेस के स्थानीय नेता अंत तक खींचतान करते रहे और एक तरह से अंत तक गड़बड़ी की तस्वीर बनी रही। आप और कांग्रेस दोनों ने दिल्ली में एक-दूसरे को खत्म करने के लिए लड़ाई लड़ी। इससे मोदी-शाह के लिए जगह बनी। अगर इसी तरह काम करना है तो गठबंधन वगैरह क्यों बनाया जाए? जी भर के लडो़! महाराष्ट्र के बाद दिल्ली के नतीजों से भी अगर कोई सबक नहीं लेता तो तानाशाह की जीत में योगदान देने का पुण्य ले लो और उसके लिए गंगा स्नान की भी जरूरत नहीं पड़ेगी!