सामना संवाददाता / नई दिल्ली
भाजपा अपने राजनीतिक विरोधियों को खत्म करने के लिए जी जान से कोशिश कर रही है। दिल्ली में ‘आप’ के प्रमुख अरविंद केजरीवाल के ऊपर विभिन्न घोटालों का ऐसा ठीकरा फोड़ा कि वे निपट गए। इसके बाद अब भाजपा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को घेरने की तैयारी कर ली है। इस संबंध में यहां के राजनीतिक गलियारों में इस तरह की सुगबुगाहट शुरू है। इस याचिका में दोषी नेताओं पर आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है। राहुल गांधी पर इस वक्त कई मामले चल रहे हैं। ऐसे में भाजपा की इस चाल को बखूबी समझा जा सकता है।
गौरतलब है कि भाजपा ने राहुल का नाम प्रत्यक्ष तौर पर नहीं लिया है, पर सुप्रीम कोर्ट में दायर इस जनहित याचिका की बहस पर ध्यान दें तो यह साफ समझ में आता है। भाजपा से जुड़े एक वरिष्ठ वकील ने सुप्रीम कोर्ट में यह जनहित याचिका दायर की है।
दोषी वापस कैसे आ सकता है?
देश में इस समय में कई ऐसे सांसद और विधायक मौजूद हैं, जिनके ऊपर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद कोई व्यक्ति संसद में कैसे लौट सकता है?
आजीवन प्रतिबंध लगाया जाए
इस जनहित याचिका में मांग की गई है कि देश में सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे के अलावा दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाए।
दो जजों की पीठ कर रही सुनवाई
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने इसलिए इस मुद्दे पर देश के अटॉर्नी जनरल से सहायता मांगी है। चुनौती देने पर केंद्र और भारत के निर्वाचन आयोग से तीन सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।
कानूनी सहारा लेकर भाजपा कर रही
राजनीतिक विरोधियों को खत्म करने की साजिश!
-सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका का यही है संदेश
इसमें हितों का टकराव भी स्पष्ट है, वे कानूनों की पड़ताल करेंगे। पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट कानूनों की समीक्षा करेगा।
भाजपा अपने राजनीतिक विरोधियों को खत्म करने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपना रही है। ईवीएम पर तो पूरे देश में उंगलियां उठ ही रही हैं, अब कानून का सहारा लेकर भी अपने विरोधियों को घेरने और उनका खेल खत्म करने के लिए जनहित याचिका का भी सहारा लिया जा रहा है। इसी सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें दोषी नेताओं पर आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है।
इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बार जब उन्हें दोषी ठहराया जाता है और दोषसिद्धि बरकरार रखी जाती है, तो लोग संसद और विधानमंडल में वैâसे वापस आ सकते हैं? इसका उन्हें जवाब देना होगा। पीठ ने आगे कहा कि हमें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा ८ और ९ के बारे में जानकारी होनी चाहिए। यदि कोई सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति निष्ठाहीनता का दोषी पाया जाता है तो उसे व्यक्ति के रूप में भी सेवा के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता, लेकिन मंत्री बन सकता है।
कई सांसदों पर चल रहे केस
रिपोर्ट के मुताबिक, ५४३ लोकसभा सांसदों में से २५१ पर आपराधिक मामले चल रहे हैं। उनमें से १७० पर ऐसे अपराध हैं, जिनमें ५ या अधिक साल की वैâद की सजा हो सकती है। इसके अलावा देश के कई ऐसे विधायक हैं जो केस होने के बाद भी विधायक बने हुए हैं।
कोर्ट ने दिए ये निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि एक पूर्ण पीठ (तीन न्यायाधीशों) ने सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे पर पैâसला सुनाया था इसलिए खंडपीठ (दो न्यायाधीशों) द्वारा मामले को फिर से खोलना अनुचित होगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को एक बड़ी पीठ के विचार करने के लिए मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के समक्ष रखने का निर्देश दिया।