– ठोस कार्रवाई नहीं होने से मछुआरे चिंतित
सामना संवाददाता / नई मुंबई
नई मुंबई और ठाणे क्षेत्रों की खाड़ियां सचमुच काली हो गई हैं, क्योंकि रासायनिक कंपनियां बिना किसी प्रसंस्करण के सीधे अपशिष्ट जल छोड़ रही हैं। मछुआरों द्वारा इस संबंध में आवाज उठाए जाने के बाद जागे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने निरीक्षण किया तो पाया कि ३७ किलोमीटर खाड़ी प्रदूषित है। इससे मछुआरे चिंतित हैं, क्योंकि कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है। उन्होंने इस संबंध में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की चेतावनी दी है।
ठाणे और नई मुंबई क्षेत्रों में बेलापुर, कोपरा, पनवेल, कासाडी, न्हावा-शेवा, घारापुरी, तलोजा, दिवाले आदि समुद्री खाड़ियां और सहायक नदियां पारंपरिक मछली पकड़ने के लिए बहुत समृद्ध मानी जाती हैं। हालांकि, औद्योगिक क्षेत्रों से बड़ी मात्रा में रसायनयुक्त जल इन खाड़ियों में छोड़ा जा रहा है। इन जहरीले रसायनों ने खाड़ियों में प्रदूषण बढ़ा दिया है और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण विभाग और रायगड जिला प्रशासन इसे नजरअंदाज कर रहा है। मछुआरों द्वारा इस गंभीर मामले की ओर ध्यान दिलाए जाने के बाद मछुआरा संघ के नई मुंबई क्षेत्रीय प्रभाग के अधिकारी विशाल मुंडे, मछुआरों और महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने संयुक्त रूप से क्षेत्र का निरीक्षण किया। इस कार्यक्रम में नंदकुमार पवार, नारायण कोली, आकाश कोली आदि शामिल हुए।
दिवाले खाड़ी, न्हावा शेवा और सोनारी खाड़ियों में किए गए एक संयुक्त सर्वेक्षण में पाया गया है कि समुद्री खाड़ियां विभिन्न प्रकार के घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट जल के कारण प्रदूषित हैं। समुद्री खाड़ी से पानी के नमूने भी परीक्षण के लिए प्रयोगशाला भेजे गए। महाराष्ट्र लघु उद्योग पारंपरिक मत्स्य श्रमिक संघ के अध्यक्ष नंदकुमार पवार ने आरोप लगाया है कि इस रिपोर्ट से खाड़ियों के प्रदूषण में उल्लेखनीय वृद्धि मिली है, इसलिए समय रहते कदम उठाने की जरूरत है, अन्यथा पारंपरिक मछुआरों के न्यायोचित अधिकारों के लिए उच्च न्यायालय में गुहार लगाने की चेतावनी भी पवार ने दी है। इस बीच, महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नई मुंबई क्षेत्रीय विभाग अधिकारी विशाल मुंडे ने कहा कि खाड़ियों का संयुक्त निरीक्षण किया गया और तलोजा औद्योगिक क्षेत्र से पानी के नमूने भी लिए गए हैं।