न खाऊंगा, न खाने दूंगा, ऐसी गर्जना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने से पहले और सत्ता में आने के बाद भी की थी। लेकिन कई अन्य घोषणाओं की तरह ही मोदी की ये घोषणा भी खोखली ही निकली। भ्रष्ट देशों की वैश्विक रैंकिंग में हिंदुस्थान ने बढ़त बना ली है और एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट से साफ हो गया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की मोदी सरकार की कोशिशें महज एक दिखावा है। हिंदुस्थान में भ्रष्टाचार दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है और दुनिया के भ्रष्ट देशों की सूची में हिंदुस्थान का नाम सम्मान के साथ नहीं, बल्कि अपमान के साथ दर्ज किया जा रहा है। दुनियाभर के पारदर्शी देशों पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ हर साल ‘करप्शन पर्सेप्शन इंडेक्स’ नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित करती है। इस रिपोर्ट के जरिए दुनिया के कुल १८० देशों को भ्रष्टाचार के मामले में रैंकिंग दी जाती है। इस संस्था ने मंगलवार को साल २०२४ के ‘करप्शन इंडेक्स’ और भ्रष्ट देशों की सूची जारी की। इस सूची में भारत ने भ्रष्टाचार के मामले में बड़ी बढ़त बना ली है। भ्रष्ट देशों की सूची में भारत ९६वें स्थान पर है। पिछले साल जारी इस सूची में भारत ९३वें स्थान पर था। एक ही साल में भारत ने भ्रष्टाचार के मामले में लंबी छलांग लगाई है और भ्रष्ट देशों की सूची में तीन पायदान ऊपर पहुंच गया है।
रेटिंग निर्धारित करते समय
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल संस्था उन-उन देशों में व्याप्त भ्रष्टाचार के स्तर के आधार पर उन्हें ० से १०० के बीच स्कोर भी देती है। इस फॉर्मूले के मुताबिक सबसे ज्यादा स्कोर वाला देश ईमानदार है और सबसे कम स्कोर वाला देश भ्रष्ट है। यह एक सरल गणित है कि भ्रष्टाचार सूचकांक में उच्च रेटिंग वाला देश एक भ्रष्ट देश है और कम रेटिंग वाला देश एक स्वच्छ देश है। रैंकिंग सार्वजनिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के स्तर के आधार पर निर्धारित की जाती है। हिंदुस्थान की बात करें तो रैंकिंग में हिंदुस्थान ९६वें स्थान पर है, जबकि स्कोर में भारत को १०० में से सिर्फ ३८ अंक मिले हैं। इसका मतलब यह है कि हिंदुस्थान भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में प्रोन्नति नहीं कर पाया है। भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ लड़ने की मोदी सरकार की घोषणाओं ने ही भ्रष्टाचार की रोटी खा ली है इसीलिए भारत का नाम भ्रष्ट देशों की सूची में काले कोयले से लिखा जा रहा है। भ्रष्ट देशों की सूची में पाकिस्तान १३५वें स्थान पर, श्रीलंका १२१वें और बांग्लादेश १४९वें स्थान पर है। इस रैंकिंग में चीन का स्थान ७६वां है। इसके विपरीत, डेनमार्क ने लगातार सातवें साल उन देशों में पहला स्थान हासिल किया है, जहां शासन व्यवस्था साफ-सुथरी है और भ्रष्टाचार सबसे कम है।
भ्रष्टाचार सूचकांक के अनुसार
डेनमार्क को १०० में से ९० अंक, फिनलैंड को ८८, सिंगापुर को ८४ तो न्यूजीलैंड को ८३ अंक मिले हैं। इसकी तुलना में हिंदुस्थान के ३८ अंक शर्म के मारे सिर झुका देनेवाले हैं। देश में भ्रष्टाचार का बढ़ता महत्व और भ्रष्टाचारियों को मिलनेवाला राजाश्रय ही हमारे देश की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनामी का कारण है। प्रधानमंत्री मोदी सार्वजनिक सभा में बोलते हुए कहते हैं, ‘‘कोई भ्रष्टाचारी मेरी बगल में बैठकर, मेरा ताप नहीं सह सकता’’। असल में तस्वीर क्या है? भ्रष्टाचारियों के ताप के कारण ही तो ये सरकार चमक गई है। ‘बीजेपी आती है, तब करप्शन भागता है’, ऐसा एक और भ्रामक नारा मोदी ने दिया था। लेकिन ‘बीजेपी आती है, तो सारे भ्रष्टाचारी बीजेपी की तरफ भागते हैं’, ये वास्तविकता है। देश में एक से बढ़कर एक नामचीन भ्रष्टाचारी भाजपा में शामिल हुए और पवित्र हो गए। अब ये भ्रष्टाचारी हमेशा मोदी के मंच पर और उनके बगल में ही बैठते हैं।’ भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ने की बजाय, भ्रष्टाचारियों को भाजपा में या सरकार के साथ लाने की लड़ाई मोदी राज में की गई। उसके लिए ईडी और अन्य सरकारी एजेंसियों को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया। देश के तमाम भ्रष्टाचार शिरोमणियों को सत्ता में लाने के बाद और क्या होगा! यदि किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन द्वारा बनाई गई भ्रष्ट देशों की सूची में हिंदुस्थान को ‘भ्रष्ट शिरोमणि’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है तो यह एक अंतरराष्ट्रीय बेइज्जती ही है। शर्म-लज्जा जैसी चीज भ्रष्टाचारियों के चरणों में अर्पण करने वाली वर्तमान सरकार को क्या इसकी कोई चिंता है?