हमें मालूम है

हमें मालूम है
सच क्या है
झूठ क्या है
हमें मालूम है
ग्रह नक्षत्र तारे
और पृथ्वी
सब के सब
घूमते हैं
सूर्य के चारों ओर
पाते हैं प्रकाश और ऊर्जा
रहते हैं गतिशील
अनवरत
अहर्निश
इस दुनिया में
हमें मालूम है
यह समाज
मानव समाज
होता है गतिशील
अपने
अपने देश के
इस दुनिया के
अर्थ तंत्र से।
और चलता है
और चल रहा है
चरित्रानुसार
इस अर्थतंत्र के।।
करता है निर्माण
अपनी अधिरचना का।
अपने समाज की
राजनीति
धर्म और साहित्य की।
हमें मालूम है
हमें खूब मालूम है
क्या है
क्या हो रहा है
कौन कर रहा है
कौन ले रहा है
क्यों ले रहा है।
कौन दे रहा है
क्यों दे रहा है
हमें मालूम है
हमें सब मालूम है।
हमें यह भी मालूम है
कौन शोषक है
कौन शोषित।
कौन कहां है
कैसे है
हमें मालूम है।
मगर हमें
यह भी मालूम है
कि हमें
कुछ नहीं मालूम है
अपने स्वार्थ के आगे
इस दुनिया में।
क्रांति इसीलिए रूठी है
सारी बयानबाजी झूठी है।
सिद्धांत और व्यवहार के बीच
भयानक दूरी है।
अधिरचना अधूरी है।
हमें मालूम है बहुत कुछ कर सकते है
लेकिन हम कुछ भी नहीं कर सकते
आज के दौर में यह भी हमें मालूम है।।
-अन्वेषी

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