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ज्ञान की मर्यादा की अंतिम लकीर केवल हरिनाम ही है-स्वामी विनय स्वारूपानंद सरस्वती

सामना संवाददाता / मुंबई

सेंचुरी मिल कामगार वसाहत वरली में हरिहर संत सेवा मंडल के तत्वाधान में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के सातवें अंतिम दिन के कार्यक्रम में अध्यक्ष श्री रामानुग्रह आश्रम से पधारे परम पूज्य महामंडलेश्वर 1008 श्री श्री डॉ. स्वामी विनय स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज आर्शीवाद वचन देते हुए समस्त भक्तों को बताया कि मानव जीवन का सर्वोत्कृष्ट फल यह है कि मानव जीवन भगवन्नाम मय हो। स्वामी जी महाराज ने कहा कि यह सिद्धांत पढ़ने की हद समझ है। समझ की हद ज्ञान। ज्ञान की हद हरि नाम है। मनुष्य कुछ भी करे, कितने ही ज्ञान का अर्जन क्यों न कर ले, किंतु सभी ज्ञान की हद उसकी मर्यादा अंतिम लकीर केवल हरि नाम ही है। इसलिए मनुष्य मात्र को इस क‌‌लि काल में केवल और केवल हरि नाम का ही आश्रय लेना चाहिए और अपने जीवन को कृतार्थ करना चाहिए। इस अवसर पर प्रयागराज से पधारे वैष्णवाचार्य स्वामी अप्रमेय प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने समस्त भक्तजनों को श्रीमद् भागवत जी की कथा सुनाई और बताया कि जीवन में जो कुछ भी उपलब्धि होगी, वह केवल और केवल संत सेवा से ही संभव है। यदि जीवन में मनुष्य को कुछ भी प्राप्त करना है लौकिक अथवा पारलौकिक तो उसे बिना समय गंवाए संत सेवा करनी चाहिए। संत सेवा कामधेनु के समान थल देने वाली है। इस धरती पर यदि साक्षात कोई कल्पवृक्ष है, तो वह संत ही हैं। इसलिए संत सेवा से जीवन में कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए हम सभी को संत सेवा करनी चाहिए। महाराज श्री ने तुकाराम जी के गाए हुए अभंगों का गायन कर समस्त श्रोता समुदाय को मंत्रमुग्ध कर दिया।

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