फिल्म ‘विकी डोनर’, ‘आर्टिकल ३७०’, ‘काबिल’, ‘उरी-द सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसी स्तरीय फिल्मों में नजर आ चुकीं यामी गौतम न केवल सुलझी हुईं, बल्कि विवादों से दूर रहनेवाली अभिनेत्री हैं। निर्माता-निर्देशक आदित्य धर से विवाह के बाद एक बेटे की मां बनी यामी नेटफ्लिक्स पर फिल्म ‘धूमधाम’ में नजर आएंगी। पेश है, यामी गौतम से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
फिल्म ‘धूमधाम’ में अपने किरदार के बारे में बताएंगी?
‘धूमधाम’ की कहानी बड़ी मजेदार है। मेरे किरदार का नाम है कोयल चड्ढा, जिसकी शादी प्रतीक गांधी यानी वीर पोद्दार से होती है। हम दोनों की किसी भी बात में कोई समानता नहीं है। शादी के बाद ससुराल पहुंची कोयल और उसके स्वभाव के विपरीत उसके पति से वैâसी नोक-झोंक होती है, यह देखना हंस-हंस के लोट-पोट कर देने जैसा है।
क्या आपका कोयल का किरदार गाली-गलौज करता है?
कोयल का किरदार है ही कुछ ऐसा। कोयल स्ट्रेट फॉरवर्ड है, जो बोलचाल और व्यवहार में शालीनता की मर्यादाएं नहीं रखती। वो अपने मन की रानी है और उतनी ही साहसी भी। वक्त पड़ने पर वो हाथापाई भी कर लेती है।
आपके लिए यह किरदार निभाना कितना चैलेंजिंग रहा?
यह सच है कि कोयल और मेरे व्यक्तित्व में जमीन-आसमान का फर्क है और मैंने अपनी जिंदगी में कभी गाली नहीं दी। किसी को मां-बहन की गंदी गाली देना मेरी सोच से परे है। मेरे मुंह से कभी गाली निकली ही नहीं, लेकिन ‘धूमधाम’ में मुझे अपनी जुबान से वाकई गालियां देनी पड़ी। यह मेरे नैतिक के मूल्यों के खिलाफ था, लेकिन प्रतीक गांधी ने मुझे कंफर्टेबल करवाते हुए कहा कि वो मेरी गालियों को नहीं सुन रहे, मैं पूरे हिम्मत से गालियां दे सकती हूं। हकीकत में हम जैसे नहीं होते उसे निभाना ही अभिनय है।
मातृत्व के बाद क्या आपके करियर और जिंदगी में कोई बदलाव हुआ?
मां बनने के बाद एक स्त्री संतान सुख प्राप्ति का जो सुख और सुकून महसूस करती है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। जब तक एक स्त्री स्वयं मां नहीं बन जाती, उसे मातृत्व का एहसास नहीं होता। बायोलॉजिकल बदलाव लाजमी है, लेकिन एक स्त्री ज्यादा दयालु और अधिक संवेदनशील हो जाती है। मां बनना एक नेचुरल अनुभव है और उसका करियर से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए। मां बनने के बाद यह फायदा हुआ कि मातृत्व के बाद मेरे पास उन फिल्मों के प्रस्ताव आ रहे हैं जो पहले कभी नहीं आए। पहले के मुकाबले अब मुझे सशक्त और अर्थपूर्ण भूमिकाएं मिल रही हैं। मैं इसे सुखद बदलाव मानती हूं।
निर्माता-निर्देशक आदित्य धर एक पति और पिता के रूप में कैसे हैं?
मैं आदित्य को बर्प स्पेशलिस्ट कहती हूं। आदित्य बेटे वेदविद को कहानियां सुनाते हैं। आदित्य ग्रेट स्टोरीटेलर हैं। कहानियां सुनाते वक्त वेदविद अपने पापा के हावभाव को निहारता है, उसे एन्जॉय करता है। हर कहानी के साथ आदित्य इतना प्यारा एक्सप्रेशंस देते हैं कि मैं अपना काम छोड़कर इन पिता-पुत्र को देखती रहती हूं। आदित्य कभी गाना गाते हैं और कभी लोरियां सुनाते हैं। हमारा बेटा अब ८ महीनों का हो गया है, लेकिन आदित्य और वेदविद के दरमियान जो अद्भुत प्यार का रिश्ता है उसे मैं महसूस कर रही हूं। जीवन की बगिया महक चुकी है। परिवार और बेटे वेदविद के प्रति आदित्य काफी दायित्व महसूस करते हैं।